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EWS कोटा संविधान के खिलाफ नहीं, SC ने कहा- जारी रहेगा 10 फीसदी आरक्षण

EWS Reservation Case: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को लेकर एक बड़ा निर्णय सुप्रीम कोर्ट सुनाया है. कोर्ट ने इस 10 फीसदी आरक्षण को जारी रखने को कहा है. कोर्ट ने इसे वैध बताया है.

Updated on: 07 Nov 2022, 12:34 PM

highlights

  • कोर्ट ने कहा, EWS कोटा वैध होने के साथ संवैधानिक भी
  • मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण को सही ठहराया
  • सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 से मुहर लगा दी है

नई दिल्ली:

EWS Reservation Case: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को लेकर एक बड़ा निर्णय सुप्रीम कोर्ट (SC) ने आज या​नी सोमवार को सुनाया है. कोर्ट ने 10 फीसदी आरक्षण को जारी रखने को कहा है. कोर्ट ने इसे वैध बताया है.  चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रविंद्र भट्ट ने इसे गलत बताया. वहीं जस्टिस माहेश्वरी, जस्टिस त्रिवेदी और जस्टिस पारदीवाला ने आरक्षण का पक्ष लिया. उन्होंने कमजोर वर्ग को मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण को सही ठहराया है. 5 जजों की पीठ ने 3-2 से इस कोटे के पक्ष में निर्णय सुनाया. चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस.रविंद्र भट्ट ने इस कोटे को गलत करार दिया.  इसे संविधान की मूल भावना के विरूद्ध बताया. जस्टिस भट्ट ने कहा कि आरक्षण के लिए 50 फीसदी की तय सीमा का उल्लंघन सही नहीं है. उन्होंने कहा कि एससी-एससी वर्ग में गरीबों की संख्या सबसे अधिक है. ऐसे में आर्थिक आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण से उन्हें बाहर रखना सही नहीं है.

आरक्षण अनंतकाल तक जारी नहीं रह सकता: पारदीवाला

EWS कोटे के पक्ष में जस्टिस जेपी पारदीवाला ने कहा कि आरक्षण अनंतकाल तक जारी नहीं रह सकता है. उन्होंने कहा कि आरक्षण किसी भी मसले का समाधान नहीं है. यह किसी भी समस्या के खत्म होने की शुरूआत मात्र है. गौरतलब है कि 2019 में संसद से  संविधान में 103वें संशोधन का प्रस्ताव पारित किया गया था. इसके तहत सामान्य वर्ग के  आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसदी के आरक्षण का फैसला लिया गया था. 

एससी-एसटी-ओबीसी को भी स्थान मिले 

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक भेदभाव को सहने वाले वर्ग का उत्थान करना था. अगर यह गरीबी का आधार है तो उसमें एससी-एसटी-ओबीसी को भी स्थान दिया जाए. 

सरकार ने दी दलील 

वहीं सरकार की ओर से कहना है कि ईडब्ल्यूएस तबके को समानता का दर्जा देने के लिए ये व्यवस्था होना आवश्यक है. केंद्र सरकार का कहना है कि इस व्यवस्था से किसी दूसरे वर्ग को परेशानी नहीं है. वहीं 50 प्रतिशत की जो सीमा कही जा रही है, वो कोई संवैधानक व्यवस्था में नहीं है. ये सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय से आया है. ऐसा नहीं है कि इसके परे जाकर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है.