महानदी किनारे बसे आरौद गांव में द्वापार युग के साक्ष्य, भीमसेन ने घाट बनवाए थे 

महानदी के ​किनारे द्वापर युग के सबूत मिलते हैं, इसकी पुष्टि पुरातत्व विभाग कर चुका है, पचरी देवी की मूर्ति को द्वापरयुग के समय की मानी जाती है

महानदी के ​किनारे द्वापर युग के सबूत मिलते हैं, इसकी पुष्टि पुरातत्व विभाग कर चुका है, पचरी देवी की मूर्ति को द्वापरयुग के समय की मानी जाती है

author-image
Mohit Saxena
New Update
mahanadi

mahanadi ( Photo Credit : social media)

भारत पूरी दुनिया मे अपनी प्राचीन सभ्यता और समृद्ध संस्कृति और विरासत के लिए जाना जाता है. भारत मे ऐसे कई प्राचीन स्थान हैं, जो इतिहास और सभ्यताओं के विकास में रुचि रखने वालों काे सबसे ज्यादा आकर्षित और प्रेरित करते हैं और यही वजह है कि चार युगों में से एक द्वापरयुग के भीमसेन द्वारा बनाये गए घाट आज भी छत्तीसगढ़ की महानदी में मौजूद हैं, जहां राजा महाराजा का कभी नगर हुआ करता था. इसका प्रमाण आज भी  महानदी के तट पर मौजूद है. दरअसल महानदी किनारे बसे आरौद गांव आज भी द्वापरयुग के साक्ष्यों को समेटे हुए है.

Advertisment

ये भी पढ़ें:  विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अबू धाबी के बीएपीएस हिंदू मंदिर में किए दर्शन, साझा की तस्वीरें

धमतरी से महज 20 किमी दूर इस गांव में राजा महाराजाओं के साक्ष्य आज भी महानदी में चट्टान की तरह मौजूद हैं. इसकी पुष्टि भी पुरातत्व विभाग कर चुका है. महानदी के बीचोंबीच विशाल शिलाओं से बनी पचरीआज भी मौजूद है. पचरी देवी की मूर्ति को द्वापरयुग का माना जाता है. ये राजा महाराजाओं की ईष्ट देवी हैं. आज की इस महानदी के घाट पर कभी राजा महाराजाओं का नगर बसा हुआ करता था.

विभाग भी इस जगह का निरीक्षण कर चुका है

इसका प्रमाण आज भी मौजूद है. पुरातत्व विभाग भी इस जगह का निरीक्षण कर चुका है.इस गांव मे रहने वाले ग्रामीणों ने बताया कि उनके पूर्वज बताते है कि भीमसेन ने इस महानदी में शिलाएं अन्य जगहों से लाकर रखी थीं. 6 मास तक इस पत्थर को घाट बनाकर उस पर स्नान करते हैं. बताया जा रहा है कि उस समय आवागमन के लिए कोई रास्ता नही था. केवल महानदी के रास्ते ही आवागमन ही एक सहारा था. ऐसे समय में भीमसेन ने महानदी पर घाट का निर्माण किया था. ये आज भी अपनी जगह पर स्थापित है. खास बात है कि जो पत्थर भीमसेन ने लाए थे, वो खास किस्म का है. ये पत्थर छत्तीसगढ़ में नहीं पाया जाता है. इसकी शिलाएं बेशक सामान्य मुरुम जैसे नहीं है. पत्थरों के लंबाई चौड़ाई और मोटाई ज्यादा होने के साथ मजबूती से हजारों सालों तक इसकी शिलाएं स्थापित हैं.

महानदी में पचरी इसलिए बनाया था

गांव वालों के मुताबिक भीमसेन ने महानदी में पचरी इसलिए बनाया था, क्योंकि वहां पर एक देवी की मूर्ति विराजमान थी. जिन्हें आज पचरी देवी के नाम से जाना जाता है. भीमसेन नदी में स्नान करने के बाद इस देवी की पूजा पाठ करते थे. गांव वालों की मानें तो इस मंदिर से कुछ दूरी पर राजा महाराजाओं का नगर बसा हुआ करता था. जो इस देवी को इष्ट देवी के रूप में मानते थे. पचरी बनने के बाद महानदी में स्नान करने के बाद पूजा किया करता था. इस देवी की मूर्ति को गांव वाले द्वापरयुग की बताते हैं. मान्यता है कि बीते हजारों सालों में न जानें कितने तूफान और बाढ़ आये होंगे. लेकिन इन शिलाओं को कुछ नहीं होता था और न नही मंदिर में देवी की प्रतिमा डूबी. यहां तक की ध्वज भी नहीं डूबा. गांव वाले बताते हैं कि यहां बीते 25 सालों में महाशिवरात्रि पर विशाल मेला लगता है. जहां दूर-दूर से लोग इन शिलाओं को देखने आते है.

गांव वालों की मानें तो जब सन 2007,08 में पांच गांवों के लोगो ने विचार किया कि खुले में रहने वाले इस देवी को मंदिर के रूप में विकसित किया जाए. जिसके लिए पांचो गांवों के लोगों ने चंदा इकट्ठा किया. तभी गांव के एक मुखिया को देवी ने सपने में आकर कहां की उसे खुले में रहने दो जो मंदिर बना रहे हो उसे रोक दो. तभी से इस मंदिर का निर्माण अधूरा है. ग्रामीणों की इस मंदिर से गहरी आस्था है. गांव वालों की मानें तो इस देवी की शरण मे सच्चे भाव से जो भी कुछ मांगते हैं. उसकी हर मुराद पूरी होती है.

गांव पुराने जमाने का बंदरगाह था

पीजी कॉलेज में इतिहास पढ़ाने वाली प्रोफेसर बताती हैं कि आरौद गांव पुराने जमाने का बंदरगाह था. वर्ष 2003,04 में पुरातत्व विभाग द्वारा ट्रॉयल उत्खनन किया गया था. जहां पर धान की भूसी मिली थी. इससे पुरात्वविदों ने अनुमान लगाया था कि आरौद के बंदरगाह से महानदी के जल मार्ग के रास्ते अनाज कटक तक जाता था. कटक से समुद्री मार्ग से विदेश भेजा जाता था. उस समय केवल जल मार्ग ही रास्ता था. बहरहाल इन शिलाओं ने आरौद गांव को एक नई पहचान दी गई है और गांव वाले अपने आपको सौभाग्यशाली मान रहे हैं कि जिस गांव मे उनका जन्म हुआ है, उस क्षेत्र में कभी भीमसेन जैसे योद्धा यहां आकर पचरी का निर्माण कर देवी की आराधना किया करते थे.

Source : News Nation Bureau

newsnation bhimsen prepared a ghat banks of mahanadi Bhimsen Dwapar era महानदी किनारे
Advertisment