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हर Corona मौत मेडिकल लापरवाही नहीं, SC ने ठुकराई मुआवजे की मांग

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इस तरह के आदेश से कई तरह की प्रशासनिक जटिलताएं होंगी. इसलिए ऐसा कोई 'जेनरिक' आदेश नहीं दिया जा सकता है.

Updated on: 08 Sep 2021, 12:03 PM

highlights

  • सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी संख्या में कोरोना मौत को माना दुर्भाग्यपूर्ण
  • डोर टू डोर कोरोना वैक्सीनेशन पर सुनवाई से भी किया इंकार
  • इसके पहले कोरोना डेथ सर्टिफिकेट पर दिए थे दिशा-निर्देश

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कोरोना से हुई हर मौत को मेडिकल लापरवाही मान कर परिवार को मुआवजा देने की मांग ठुकरा दी है. यही नहीं, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि बड़ी संख्या में मौतों का होना दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि हर मौत मेडिकल लापरवाही का ही मामला है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने 'डोर टू डोर' कोविड वैक्सीनेशन (Corona Vaccination) की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया है. इस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इस तरह के आदेश से कई तरह की प्रशासनिक जटिलताएं होंगी इसलिए ऐसा कोई 'जेनरिक' आदेश नहीं दिया जा सकता है.

डोर टू डोर टीकाकरण पर सुनवाई से इंकार
सुप्रीम कोर्ट ने 'डोर टू डोर' कोविड वैक्सीनेशन की मांग पर सुनवाई से इनकार कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि देश में टीकाकरण सही तरीके से चल रहा है. 60 फीसदी लोगों को कम से कम एक टीका लग चुका है. अदालत ने कहा कि अलग से आदेश की जरूरत नहीं है. इसके पहले कोरोना से मरने वालों के परिवार को मुआवजा देने की नीति अब तक तय न होने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई थी. कोर्ट ने केंद्र को मुआवजा नीति बनाने के अलावा डेथ सर्टिफिकेट में मौत की सही वजह दर्ज करने की व्यवस्था बनाने के लिए भी कहा था. मामले में अब तक जवाब दाखिल न होने पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा था कि आप जब तक कदम उठाएंगे, तब तक तीसरी लहर भी आकर जा चुकी होगी.

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पहले कोरोना मौत पर दिए थे मुआवजे के आदेश
गौरतलब है कि 30 जून को दिए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने देश में कोरोना से हुई हर मौत के लिए मुआवजा देने को कहा था. कोर्ट ने नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी से कहा था कि वह 6 हफ्ते में मुआवजे की रकम तय कर राज्यों को सूचित करे. कोर्ट ने माना था कि इस तरह की आपदा में लोगों को मुआवजा देना सरकार का वैधानिक कर्तव्य है, लेकिन मुआवजे की रकम कितनी होगी यह फैसला कोर्ट ने सरकार पर ही छोड़ दिया था. मामले के याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि अस्पताल से मृतकों को सीधा अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा है. न उनका पोस्टमॉर्टम होता है, न डेथ सर्टिफिकेट में लिखा जाता है कि मृत्यु का कारण कोरोना था. ऐसे में अगर मुआवजे की योजना शुरू भी होती है तो लोग उसका लाभ नहीं ले पाएंगे.