पांच राज्यों में चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल ने कांग्रेस में उत्साह भर दिया है. अगर नतीजे एग्जिट पोल जैसे आते हैं तो महागठबंधन की डोर संभालने के लिए कांग्रेस की दावेदारी बढ़ सकती है. अभी महागठबंधन का भविष्य ही अधर में दिखाई दे रहा है. तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) सुप्रीमो और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू भले ही विपक्षी पार्टियों को जोड़कर महागठबंधन की शक्ल देने की कोशिश में लगे हो, कुछ दल ऐसे हैं जो बीजेपी से मात खाए कांग्रेस को इसकी कमान देने में हिचक रहे हैं.
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सोमवार को विपक्षी दलों की बैठक होनी है. लेकिन बता दे कि इससे पहले भी महागठबंधन की बैठक रद्द हो चुकी है. उस वक्त ममता बनर्जी ने यह कहते हुए बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया था कि महागठबंधन की बैठक फिलहाल थोड़ी जल्दबाजी होगी. ममता बनर्जी कही ना कही कांग्रेस को अहम भूमिका देने के पक्ष में नहीं है.
ऐसा ही कुछ हाल समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव और बीएसपी सुप्रीमो मायावती का है. वो भी महागठबंधन की बैठक से कन्नी काट रहे हैं. उत्तर प्रदेश में एसपी और बीएसपी का दबदबा है और कहा जाता है कि दिल्ली में सत्ता का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है. ऐसे में अखिलेश यादव और मायावती दोनों महागठबंधन में बड़ी भूमिका चाहते हैं.
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में अखिलेश यादव और मायावती दोनों ने कांग्रेस को 'बड़ा भाई' मानने से इंकार कर दिया था. दोनों पार्टियों ने कांग्रेस के साथ दोनों राज्यों में गठबंधन नहीं किया. यानी साफ हो जाता है कि बुरे दौर से गुजर रहे कांग्रेस को महागठबंधन की कमान देने से ये भी परहेज कर रहे हैं.
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ऐसे में अगर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बहुमत में आती है तब शायद कांग्रेस के नेतृत्व में महागठबंधन बनने की संभावना बढ़ जाती है. हालांकि इसमें एक पेंच और फंस सकता है कि बीजेपी के मोदी के सामने महागठबंधन का चेहरा कौन हो सकता है यानी प्रधानमंत्री की दावेदारी किसकी होगी. हालांकि कांग्रेस के कई नेताओं ने पहले साफ कर दिया है कि अगर 2019 के चुनाव में महागठबंधन जीतती है तो राहुल गांधी पीएम बनेंगे, जिसपर कुछ पार्टियों ने आपत्ति दर्ज की. जिसके बाद राहुल गांधी को सामाने आना पड़ा और उन्होंने कहा कि पीएम का चेहरा कौन होगा अभी से कहना जल्दबाजी होगी और महागठबंधन में शामिल पार्टियां इसका फैसला करेगी.
बता दें कि महागठबंधन में राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर कांग्रेस है और ऐसे में पांच राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब होता है तो दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां राहुल गांधी को नजरअंदाज कर सकती है. इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है.
Source : Nitu Kumari