Dushyant kumar birthday: पढ़िए दुष्यन्त कुमार की 10 बेहतरीन लाइन

उनके कई पंक्तियां लोगों के जुबान पर चढ़ गई है जो अक्सर लोग गुनगुनाते हैं। आइए जानते हैं ऐसी ही 10 पंक्तियों के बारे में..

उनके कई पंक्तियां लोगों के जुबान पर चढ़ गई है जो अक्सर लोग गुनगुनाते हैं। आइए जानते हैं ऐसी ही 10 पंक्तियों के बारे में..

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sankalp thakur
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Dushyant kumar birthday: पढ़िए दुष्यन्त कुमार की 10 बेहतरीन लाइन

दुष्यंत कुमार (फाइल फोटो)

हिन्दी गजल परंपरा में मील के पत्थर दुष्यंत कुमार का जन्म 1 सितम्बर, 1933 को राजपुर नवादा गांव (बिजनौर, उत्तर प्रदेश) में हुआ था। दुष्यंत को हिंदी ग़ज़ल का सशक्त हस्ताक्षर माना जाता है। उन्होंने 'कहां तो तय था', 'कैसे मंजर', 'खंडहर बचे हुए हैं', 'जो शहतीर है', 'ज़िंदगानी का कोई', 'मकसद', 'मुक्तक', 'आज सड़कों पर लिखे हैं', 'मत कहो, आकाश में', 'धूप के पाँव', 'गुच्छे भर', 'अमलतास', 'सूर्य का स्वागत', 'आवाजों के घेरे','बाढ़ की संभावनाएँ', 'इस नदी की धार में', 'हो गई है पीर पर्वत-सी' जैसी कालजयी कविताओं से दुष्यन्त ने सबके दिल में जगह बनाई।

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उनके कई पंक्तियां लोगों के जुबान पर चढ़ गई है जो अक्सर लोग गुनगुनाते हैं। आइए जानते हैं ऐसी ही 10 पंक्तियों के बारे में..

1-आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख

2-हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

3-ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा

4-भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ
आजकल दिल्ली में है जेरे बहस ये मुद्दा

5-कहां तो तय था चिरागां हर एक घर के लिए
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए

6-अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए,
तेरी सहर में मेरा आफ़ताब हो जाए

7-अब किसी को भी नजर आता नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके है इतने इश्तहार

8-कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो

9-इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है

10-मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए

Source : News Nation Bureau

Dushyant kumar
      
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