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कमलनाथ की छोटी सी लालच के चलते कांग्रेस के 'हाथ' से निकल गया मध्‍य प्रदेश

मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री कमलनाथ ने आखिरकार गवर्नर लालजी टंडन को इस्‍तीफा सौंप दिया. इसके साथ ही होली के एक दिन पहले से राज्‍य में प्रारंभ हुई उठापटक अपने पड़ाव पर पहुंच गया.

Updated on: 20 Mar 2020, 02:35 PM

नई दिल्‍ली:

मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री कमलनाथ (Kamalnath) ने आखिरकार गवर्नर लालजी टंडन (Lalji Tondon) को इस्‍तीफा सौंप दिया. इसके साथ ही होली के एक दिन पहले से राज्‍य में प्रारंभ हुई उठापटक अपने पड़ाव पर पहुंच गया. होली के दिन ही ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) से मुलाकात की थी और शाम को कांग्रेस की अंतरिम अध्‍यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को इस्‍तीफा भी भेज दिया था. इसके बाद ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया खेमे के 22 विधायकों ने विधानसभा अध्‍यक्ष को अपना इस्‍तीफा भेज दिया था. यह सब हुआ मुख्‍यमंत्री कमलनाथ की एक छोटी सी लालच के चलते. अगर सीएम कमलनाथ प्रदेशाध्‍यक्ष पद छोड़ देते तो न ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया नाराज होते और न ही उनकी सरकार जाती और न ही कांग्रेस के हाथ से मध्‍य प्रदेश जैसा बड़ा राज्‍य हाथ से निकलता.

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2018 में जब कांग्रेस ने राज्‍य में सरकार बनाई थी, तब ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया सीएम पद के लिए अड़े हुए थे. लेकिन आलाकमान ने कमलनाथ के नाम पर मुहर लगाई. राहुल गांधी ने किसी तरह ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को मनाया और कमलनाथ-सिंधिया को वारियर करार दिया था. सिंधिया गुट का कहना है कि उस समय कांग्रेस आलाकमान की ओर से ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को प्रदेशाध्‍यक्ष बनाने की बात कही थी. ज्‍योतिरादित्य सिंधिया इंतजार करते रहे, लेकिन कमलनाथ सीएम के अलावा पीसीसी चीफ पद पर भी चिपके रहे.

हद तो तब हो गई, जब कमलनाथ गुट सिंधिया गुट को पार्टी में ठिकाने लगाने पर आमादा हो गया. लोकसभा चुनाव हारने के बाद से कमलनाथ गुट कांग्रेस में हावी हो गया और ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को किनारे लगाने की रणनीति पर काम प्रारंभ हो गया. लोकसभा चुनाव हारने के बाद ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया की आखिरी उम्‍मीद राज्‍यसभा चुनाव पर टिकी थी, लेकिन उसमें कमलनाथ और दिग्‍विजय सिंह का गुट एक हो गया और ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को दरकिनार करने की रणनीति बनने लगी. इसकी भनक ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को लग गई थी. 

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इस बीच ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया ने किसानों की एक सभा की, जिसमें उन्‍होंने सड़क पर उतरने की बात कही थी और जवाब में कमलनाथ ने कह दिया- उन्‍हें सड़क पर उतरना है तो उतर जाएं. फिर क्‍या था, ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया की भृकुटि तन गई और प्रदेश में ऑपरेशन कमल प्रारंभ हो गया. जानकारों की मानें तो सबसे पहले ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया ने अपने गुट के विधायकों से बात की और उन्‍हें बड़े कदम उठाने को लेकर मुतमईन किया. उसके बाद वे बीजेपी के आला नेताओं से मिले और फिर सोनिया गांधी को अपना इस्‍तीफा भेज दिया.

कांग्रेस को उम्‍मीद थी कि सत्‍ता के लालच और विधायकी जाने के डर से ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया गुट के विधायक उनके साथ नहीं जा पाएंगे और कमलनाथ सब मैनेज कर लेंगे, लेकिन यह अंदाजा गलत निकला. ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया ने तगड़ा दांव खेलते हुए इस्‍तीफा देने से पहले ही विधायकों को बीजेपी की मदद से बेंगलुरू के रिजॉर्ट में पहुंचवा दिया था.