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कश्मीर: इस गांव पर अजीब साया, हर परिवार में दिव्यांगों की पैदाइश; जीवन संवारने में जुटी इंडियन आर्मी

इस गांव में पूरे 105 परिवार हैं, लेकिन हर परिवार पर रहस्यमयी साए की तरह दिव्यांगता का साया है. यहां के लोग अजीब वजह से मूक और बधिर हो जाते हैं. ऐसे में सेना के एक प्रवक्ता ने कहा कि...

Updated on: 17 Feb 2022, 11:08 PM

highlights

सेना ने पूरे गांव को लिया गोद

शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए शिक्षकों की तैनाती

ग्रामीणों को सेना की पहल पर भरोसा

श्रीनगर:

भारतीय सेना जम्मू-कश्मीर में तैनात रहकर न सिर्फ आतंकवादियों से लोहा ले रही है और देश की सुरक्षा कर रही है. बल्कि वहां पर वो स्थानीय लोगों का जीवन भी संवार रही है. सेना वैसे तो आम जनता के कल्याण के लिए कई सारी योजनाएं स्थानीय स्तर पर चला रही है, लेकिन जब उसके पास डोडा जिले के एक जनजातीय गांव की कहानी पहुंची, तो उसने यहां कुछ अलग करने का ठान लिया. क्योंकि यहां हालात ही ऐसे हैं.

बेहद अलग है गांव, हर घर में दिव्यांग

सेना से जुड़े लोगों ने बताया कि डोडा जिले के भद्रवाह कस्बे से 105 किमी की दूरी पर एक गांव है. जो पहाड़ी की चोटी पर बसा है. गांव भले ही पहाड़ी की चोटी पर बसा है, लेकिन उस गांव के अधिकांश लोग दिव्यांग हैं. जी हां, भद्रवाह कस्बे से 105 किमी दूर बने इस गांव में पूरे 105 परिवार हैं, लेकिन हर परिवार पर रहस्यमयी साए की तरह दिव्यांगता का साया है. यहां के लोग अजीब वजह से मूक और बधिर हो जाते हैं. ऐसे में सेना के एक प्रवक्ता ने कहा कि इन लोगों के इलाज और पढ़ाई के लिए राष्ट्रीय राइफल्स ने अब इसे गांव को गोद लिया है. 

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सेना के प्रवक्ता ने दी हैरान करने वाली जानकारी

सेना के प्रवक्ता ने बताया कि 105 परिवार के इस गांव में 55 परिवार ऐसे हैं, जिनका कोई न कोई सदस्य न तो बोल सकता है और न ही सुन सकता है. पूरे गांव में ऐसे 78 लोग हैं, जिनमें 41 महिलाएं और 30 तीन से 15 साल की उम्र के बच्चे हैं. ऐसे में राष्ट्रीय रायफल्स ने इनकी जिंदगी को संवारने का बीड़ा उठाया है. इसके लिए सेना ने सांकेतिक भाषा के प्रशिक्षकों की तैनाती इसी गांव में की है. इसके अलावा स्थानीय ग्राम पंचायत दधाकी में हॉस्टल सुविधा से लैस स्कूल भी शुरू करने की योजना सेना बना रही है. ताकि सांकेतिक भाषा के प्रशिक्षकों से वो प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें और शान से जीवन यापन कर सकें.

शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था कर रही सेना

ग्रामीणों ने बताया कि जब भी कोई महिला गर्भवती होती है, तो न केवल उसका परिवार बल्कि पूरा गांव भावी संतान के मूक-बधिर होने के भय में रहता है. उनका कहना है कि बीते दशकों में कई एनजीओ उन तक पहुंचे. लेकिन उनकी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया. ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें सेना की पहल पर भरोसा है, क्योंकि सेना उनके लिए शिक्षण और प्रशिक्षण दोनों की व्यवस्था कर रही है. यही नहीं, सेना ने कई बच्चों को सुनने में मदद करने वाली मशीन भी दी है.