हिस्ट्रीशीटर्स को जमानत आंख बंद कर न दें अदालत, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि अदालतों को हिस्ट्रीशीटरों (Historysheeter) को जमानत देने के वक्त आंखों पर पट्टी बांधने वाला नजरिया नहीं अपनाना चाहिए.

author-image
Nihar Saxena
एडिट
New Update
SC

सुप्रीम कोर्ट की आदतन अपराधियों की जमानत पर सख्त टिप्पणी.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

लगभग छह साल पहले आजमगढ़ में राज नारायण सिंह की हत्या के आरोपी को जमानत देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सख्त टिप्पणी की है. इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने अब सेवानिवृत्त हो चुके मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे (SA Bobde) के फैसले को भी पलट दिया है. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि अदालतों को हिस्ट्रीशीटरों (Historysheeter) को जमानत देने के वक्त आंखों पर पट्टी बांधने वाला नजरिया नहीं अपनाना चाहिए. इसके साथ ही उन्हें छोड़ने से पहले इस बात पर भी जरूर गौर करना चाहिए कि इसका गवाहों और पीडि़त के निर्दोष स्वजनों पर क्या असर पड़ेगा. इस सख्त टिप्पणी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त चीफ जस्टिस एसए बोबडे के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आरोपित को जमानत (Bail) देने के आदेश को खारिज कर दिया.

Advertisment

सर्वोच्च अदालत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि आजादी जरूरी है. फिर चाहे एक व्यक्ति ने कोई अपराध ही क्यों न किया है, लेकिन अदालतों को भी यह देखने की जरूरत है उनकी रिहाई से किसके जीवन को खतरा हो सकता है. क्या किसी गवाह या पीडि़त के जीवन को जमानत पर छोड़े जानेवाले अपराधी से खतरा है. यह बताने की जरूरत नहीं कि ऐसे मामलों में कोर्ट आंखों पर पट्टी बांधकर किसी आरोपित को इससे परे मान ले. इसके लिए अदालत केवल उन्हीं पक्ष की न सुनें जो उनके समक्ष पेश हुए हैं बल्कि अन्य पहलुओं का भी ध्यान रखें.

उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता सुधा सिंह आरोपित अरुण यादव के हाथों मारे गए राज नारायण सिंह की पत्नी हैं. 52 वर्षीय राज नारायण सिंह उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कोआपरेटिव सेल के अध्यक्ष थे. वर्ष 2015 में आजमगढ़ के बेलैसिया में चहलकदमी के दौरान गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी. आरोपित एक शार्पशूटर है. मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों मुख्तार अंसारी को पंजाब की रूपनगर जेल से उत्‍तर प्रदेश के बांदा की जेल भेजने का आदेश करते हुए कहा था कि कानून के राज को चुनौती मिलने पर हम असहाय दर्शक बने नहीं रह सकते हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि चाहे कैदी अभियुक्त हो, जो कानून का पालन नहीं करेगा वह एक जेल से दूसरी जेल भेजे जाने के निर्णय का विरोध नहीं कर सकता है. 

HIGHLIGHTS

  • हत्यारोपी को जमानत देने पर शीर्ष अदालत की सख्त टिप्पणी
  • इलाहबाद हाईकोर्ट के जमानत नहीं देने के फैसले को माना
  • साथ ही पूर्व चीफ जस्टिस एसए बोबडे के फैसले को पलटा
Supreme Court Historysheeters जमानत Allahabad Highcourt bail सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट SA Bobde हिस्ट्रीशीटर
      
Advertisment