दिल्ली सरकार जिन शिक्षकों और कर्मचारियों को पहले घोष्ट एंप्लॉयी कहती थी, आज उन्ही शिक्षकों को समायोजित करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखा जा रहा है। सरकार पर यह आरोप स्वयं दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक लगा रहे हैं। दिल्ली सरकार से नाराज शिक्षकों का कहना है कि बीते कई महीनों से उन्हें वेतन तक नहीं मिला है। सरकार पहले इस रुके हुए वेतन की व्यवस्था करे, फिर समायोजन की बात करे।
शिक्षकों का मानना है कि दिल्ली सरकार ध्यान भटका कर डीयू की एग्जीक्यूटिव और एकेडमिक काउंसिल चुनाव में एडहॉक शिक्षकों के वोट लेने के लिए यह चुनावी दांव चल रही है।
शिक्षकों के मुताबिक दिल्ली सरकार के वित्त पोषित कालेज में तदर्थ अध्यापकों को सातवें वेतन आयोग के एरियर अभी तक नहीं मिले हैं। पिछले तीन सालों से अध्यापकों को चिकित्सा बिलों का भुगतान, एलटीसी सुविधा का भुगतान और बाल शिक्षा भत्ता भी नहीं मिला है। इसके साथ ही बीते 4 महीनों से वेतन भी नहीं आया है।
इस बीच दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को एक पत्र लिखा है। पत्र में सिसोदिया ने कॉलेजों में सहायक प्रोफेसरों के लिए चल रहे साक्षात्कार के दौरान लगभग 70 प्रतिशत एडहॉक और अस्थायी शिक्षकों के विस्थापन पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने स्थायी भर्ती में एडहॉक शिक्षकों को शामिल करने को कहा है।
सिसोदिया के इस पत्र पर दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठन फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस का कहना है कि दिल्ली सरकार पहले इन्हीं शिक्षकों और कर्मचारियों को घोष्ट एंप्लॉयी कहती थी और आज उन्हें ही समायोजित करने के लिए कुलपति को पत्र लिख रही है। शिक्षकों ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह से मांग की है कि वह शिक्षकों की सैलरी, एरियर के भुगतान, एलटीसी, मेडिकल बिलों को क्लियर करने के लिए दिल्ली सरकार को लिखें।
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुल 28 कॉलेज दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं। इनमें से 12 कालेज दिल्ली सरकार द्वारा शत-प्रतिशत वित्तपोषित हैं। इन्ही बारह कालेजों में लगातार वित्तीय समस्याएं बनी रहती हैं। शिक्षकों कहना है कि पिछले तीन सालों से इन कालेजों को मिलने वाले अनुदान में कमी और देरी के मामले सामने आये हैं। अब यहां बीते चार महीने से वेतन नहीं मिला है।
इससे नाराज महाराजा अग्रसेन कालेज के अध्यापकों ने तो फुटपाथ पर जूते पॉलिश कर अपना विरोध जताया है। गौरतलब है कि महाराजा अग्रसेन के कालेज भी इन्हीं 12 वित्त पोषित कॉलेजों में से एक है और नियमित वेतन न मिलने की समस्याओं से जूझ रहा है। प्रोफेसर पीके शर्मा के मुताबिक महाराजा अग्रसेन कालेज के अध्यापकों और कर्मचारियों को चार महीनों से वेतन नहीं मिला है। वेतन न मिलने की स्थिति में कर्मचारी और अध्यापक अपने बच्चों की स्कूल फीस का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं, ये अपने लोन के भुगतान की किश्तें भी नहीं दे पाए हैं।
वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हंसराज सुमन ने मनीष सिसोदिया के उस निर्णय पर अपना विरोध जताया है जिसमें उन्होंने, दिल्ली सरकार से वित्त पोषित सभी 28 कॉलेजों के एडहॉक शिक्षकों को समायोजित करने के लिए कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को पत्र लिखा है।
प्रोफेसर सुमन का कहना है कि सिसोदिया पहले अपने दिल्ली सरकार के स्कूलों में लगे हजारों अतिथि शिक्षकों (गेस्ट टीचर्स) को समायोजित करें उसके बाद इन 28 कॉलेजों के बारे में सोचें।
शिक्षकों के मुताबिक दिल्ली सरकार के 28 वित्त पोषित कॉलेजों में समय पर तनख्वाह नहीं दी जा रही। प्रमोशन के बाद उनको एरियर अभी तक नहीं मिला है, एलटीसी बिल व मेडिकल बिल क्लियर नहीं हो रहे हैं। शिक्षक और कर्मचारी धरने पर बैठे हुए हैं। दिल्ली सरकार उधर ध्यान नहीं दे रही है। उनका कहना है कि यदि उप-मुख्यमंत्री वास्तव में शिक्षकों का हित चाहते हैं तो पहले कॉलेजों का रोस्टर ठीक कराएं और प्रिंसिपल पदों पर आरक्षण लागू कर पदों को भरें।
गौरतलब है कि दिल्ली सरकार के स्कूलों में पिछले एक दशक से 7 हजार से ज्यादा गेस्ट और एडहॉक टीचर्स कार्य कर रहे हैं। सरकार उन्हें कई बार समायोजित करने का आश्वासन दे चुकी है लेकिन आज तक समायोजित नहीं किया गया।
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Source : IANS