शिक्षक दिवस पर, दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों के कई छात्र और शिक्षक नई शिक्षा नीति का विरोध करने के लिए एक साथ आए। डूटा के बैनर तले विरोध कर रहे इन प्रदर्शनकारियों ने नई शिक्षा नीति (एनईपी) के विरोध में कहा कि यह देश में सार्वजनिक वित्त पोषित शिक्षा को कमजोर करने और खत्म करने के प्रयास के अलावा और कुछ नहीं है।
इस विरोध प्रदर्शन डूटा, एफईडीसीयूटीए और ज्वाइंट फोरम फॉर मूवमेंट इन एजुकेशन के बैनर तले शिक्षकों और छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया। डूटा के अध्यक्ष राजीब रे ने कहा कि जागरूकता फैलाने के लिए मंडी हाउस में एक मानव श्रृंखला बनाई गई। उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थानों में शासन निजी निकायों (बीओजी) को सौंप दिया जाएगा, जिनके पास पाठ्यक्रम, पाठ्यक्रम, शिक्षकों की संख्या आदि के सभी पहलुओं को तय करने की शक्ति होगी।
डूटा के अध्यक्ष राजीब रे ने अपनी मांगों को दोहराया और कहा कि डीओपीटी रोस्टर के अनुसार, तदर्थ और अस्थायी शिक्षकों के लिए अवशोषण के लिए एकमुश्त विनियमन हो। वित्त पोषण के बार-बार संकट के समाधान के लिए दिल्ली सरकार द्वारा बनाए गए 12 डीयू कॉलेजों का यूजीसी अधिग्रहण किया जाए। फूटा ने कहा कि कोविड पीड़ितों के परिवारों के लिए मुआवजा दिया जाए।
राजीब रे ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार उन हजारों शिक्षकों की दुर्दशा पर मुंह फेरती है जो अनिश्चित परिस्थितियों में निस्वार्थ भाव से काम करते हैं। सरकार यह जानती है कि यह एनईपी में परिकल्पित बड़े पुनर्गठन से नौकरियों में कटौती होगी। यह नहीं भूलना चाहिए कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 10,000 से अधिक पद, राज्य विश्वविद्यालयों में कई और देशभर के स्कूलों में 12 लाख से अधिक पद रिक्त हैं। दशकों से नियमित नियुक्तियां नहीं हुई हैं।
डूटा का कहना है कि 4 ईयर अंडर ग्रैजुएट प्रोग्राम यानी एफवाईयूपी और उसके एमईईएस, स्वयं और एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट, शैक्षणिक ढांचे व डिग्री को अर्थहीन कर देंगे। देश के युवाओं, विशेष रूप से हमारे समाज के वंचित और हाशिए के वर्गों के भविष्य को प्रभावित करेंगे।
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Source : IANS