दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में निर्णय लेने वाली सबसे महत्वपूर्ण संस्था एग्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक में 4 वर्षीय अंडर ग्रेजुएट पाठ्यक्रम को मंजूरी दे दी गई है। बैठक के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय एग्जीक्यूटिव काउंसिल के कई सदस्यों ने इसपर अपना विरोध भी दर्ज कराया। हालांकि बहुमत से 4 वर्षीय अंडर ग्रेजुएट पाठ्यक्रम को मंजूरी मिल गई है।
एग्जीक्यूटिव काउंसिल में चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम (एफवाईयूपी) सहित राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत कई सुधारों को मंजूरी दी गई है। शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि यह कोर्स पिछली बार 2013 में लाए गए 4 वर्षीय ग्रेजुएशन पाठ्यक्रम से अलग है। इस बार कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों को अपने नियमित 3 वर्ष के ग्रेजुएश कार्यक्रम चलाने की मंजूरी होगी। साथ ही यह नई व्यवस्था भी लागू की जा सकती है। इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों और विभागों के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्च र सपोर्ट की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा गया।
बैठक में मौजूद रहे एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य अशोक अग्रवाल ने कहा कि एफवाईयूपी पर उन्होंने अपना विरोध दर्ज कराया है। इसके अलावा कई अन्य सदस्यों ने नई शिक्षा नीति को लागू किए जाने पर भी अपना विरोध दर्ज किया है। अशोक अग्रवाल के मुताबिक, उनके विरोध के बावजूद बहुमत एफवाईयूपी के पक्ष में था जिसके चलते मंगलवार रात इसे मंजूरी दे दी गई।
दिल्ली विश्वविद्यालय में दो कॉलेज खोलने का प्रस्ताव है। इनमे से एक का नाम सावरकर के नाम पर रखने पर विचार किया जा रहा है। यह विषय भी दिल्ली विश्वविद्यालय की 31 अगस्त को हुई एग्जीक्यूटिव काउंसिल के समक्ष रखा गया।
दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक काउंसिल के सदस्य प्रोफेसर नवीन गौड़ ने आईएएनएस से कहा कि अकादमिक काउंसिल की बैठक में कई नामों पर चर्चा हो चुकी है। वी.डी. सावरकर, सरदार पटेल, सुषमा स्वराज, स्वामी विवेकानंद, सावित्रीबाई फुले व दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्मप्रकाश के नाम पर भी चर्चा की गई है। चर्चा में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, अरुण जेटली का नाम भी शामिल रहा।
इन नामों को मंगलवार को एग्जीक्यूटिव काउंसिल के समक्ष चर्चा की गई। एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य अशोक अग्रवाल ने आईएएनएस से कहा कि काउंसिल की मीटिंग के दौरान हमने महात्मा गांधी और अमर्त्य सेन जैसी हस्तियों के नाम पर दिल्ली विश्वविद्यालय में नए कॉलेज खोले जाने का प्रस्ताव रखा है। फिलहाल इन नामों को भी विचार के लिए प्रस्ताव में शामिल कर लिया गया है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर पी.सी. जोशी का कहना है कि सावरकर, स्वामी विवेकानंद, सुषमा स्वराज एवं सरदार पटेल के नाम को समाज में उनके योगदान के आधार पर प्रस्तावित किया गया है।
वहीं अपना विरोध दर्ज कराते हुए डूटा के अध्यक्ष राजीब रे ने कहा कि शैक्षणिक वर्ष 2022-23 को एनईपी के कार्यान्वयन के वर्ष के रूप में तय करना निराधार है, क्योंकि पहले सभी हितधारकों के बीच एनईपी 2020 पर विस्तृत चर्चा और व्यापक परामर्श की आवश्यकता है। इसके बाद ही हम यह निर्धारित कर सकते हैं कि एनईपी 2020 व्यवहार्य होगा या नहीं।
डूटा अध्यक्ष के मुताबिक, एमईईएस के साथ एफवाईयूपी संरचना स्नातक कार्यक्रम के लिए खर्च में वृद्धि करेगी। कम वर्षो के अध्ययन के साथ सिस्टम छोड़ने वाले छात्रों को हमेशा जॉब मार्केट द्वारा ड्रॉपआउट के रूप में माना जाएगा। मल्टी एंट्री एंड एक्जिट सिस्टम (एमईईएस) केवल डिग्री का झूठा अर्थ देकर एट्रिशन रेट में वृद्धि करेगा। एक छात्र की नौकरी की संभावनाओं पर इस तरह के पुरस्कारों की प्रासंगिकता स्पष्ट नहीं है। यह एक बेहद खराब तरीके से तैयार की गई संरचना है, जिसे अगर लागू किया जाता है तो वास्तव में आने वाली पीढ़ियों के करियर की प्रगति को नुकसान पहुंचा सकता है।
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Source : IANS