दिल्ली विश्वविद्यालय की सर्वोच्च संस्था एकेडेमिक काउंसिल की बैठक मंगलवार को हुई। इस दौरान एकेडेमिक काउंसिल के दो सदस्यों डॉ सुनील कुमार व डॉ आशा रानी ने नई शिक्षा नीति के कई प्रावधानों का विरोध किया है। यह दोनों सदस्य दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठन, दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन से जुड़े हैं।
आम आदमी पार्टी समर्थक सुनील कुमार व डॉ आशा रानी ने कहा कि उन्होंने उन सभी प्रावधानों का विरोध किया जो सेवा शर्तों, शिक्षकों की संख्या और स्थिति, केंद्र सरकार से अनुदान, डीयू के यूजी, पीजी, अनुसंधान और नवाचार कार्यक्रमों की शैक्षणिक सामग्री में कमी, सांविधिक निकायों की संरचना और कामकाज पर प्रतिकूल असर डालते हैं।
एकेडेमिक काउंसिल सदस्यों डॉ सुनील कुमार व डॉ आशा रानी का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा एनईपी समिति द्वारा तैयार की गई सिफारिशों को व्यापक विचार-विमर्श के लिए रखा जाना चाहिए। यह दस्तावेज अकादमिक परिषद में चर्चा के लिए उपयुक्त नहीं है और इस पर गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता है। यह तभी संभव है जब इसे पाठ्यक्रम समिति के शिक्षकों, स्टाफ परिषदों और सभी संबंधित सांविधिक निकायों के सदस्यों सहित सभी हितधारकों से फीडबैक के लिए भेजा जाए। उसके बाद ही इस पर चर्चा होनी चाहिए।
बैठक में दोनों सदस्यों ने कहा कि विश्वविद्यालय विभागों और उसके महाविद्यालयों में आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों का पालन करते हुए मौजूदा तदर्थ शिक्षकों के नियमितीकरण, समायोजन, स्थायी नियुक्ति प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद ही यूजी स्तर पर संरचनात्मक परिवर्तन को अपनाया जाना चाहिए।
डीटीए के अध्यक्ष डॉ. हंसराज सुमन ने सरकार और शिक्षाविदों को याद दिलाया है कि वर्ष 2013 में 4 वर्षीय अंडर ग्रेजुएट पाठ्यक्रम यानी एफवाईयूपी के अनुभव से पता चलता है कि छात्रों ने चौथे वर्ष के लिए अतिरिक्त खर्च के विचार को खारिज कर दिया। एक बार फिर हम एक ऐसी ही आपदा के कगार पर हैं। एमईईएस अतिरिक्त व्यय के बोझ के साथ ड्रॉप-आउट को प्रोत्साहित करेगा। यह महिला छात्रों के साथ-साथ हाशिए पर और वंचित वर्ग के अन्य लोगों को भी प्रभावित करेगा। चौथे वर्ष के जुड़ने से कक्षाओं, प्रयोगशालाओं आदि के मामले में बुनियादी ढांचे पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
डॉ. सुमन ने आईएएनएस से कहा कि अधिकांश कॉलेजों में आगे विस्तार के लिए कोई जगह या गुंजाइश नहीं है। स्नातक पाठ्यक्रम के पहले या दूसरे वर्ष के बाद प्रमाणपत्र या डिप्लोमा के साथ संस्थान छोड़ने वालों की नौकरी की संभावनाओं पर भी कोई स्पष्टता नहीं है। चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम में 196 क्रेडिट शामिल हैं, जिसमें केवल 84 क्रेडिट मुख्य पाठ्यक्रमों को आवंटित किए गए हैं। इसका मतलब है कि कुल क्रेडिट का 57.14 फीसदी अन्य विश्वविद्यालयों से चार वर्षों में अर्जित किया जा सकता है। स्वयं (ऑनलाइन) पोर्टल पर एबीसी और एमओओसीएस के प्रावधानों के माध्यम से मिश्रित शिक्षण को प्रोत्साहित करना, जिसमें छात्र अपने क्रेडिट का 40 फीसदी ऑनलाइन मोड के माध्यम से अर्जित कर सकते हैं और उन्हें अपनी डिग्री के लिए स्थानांतरित कर सकते हैं, यह कक्षा शिक्षण का एक विकल्प भी बनाता है और शैक्षणिक कठोरता को कम करता है।
वहीं 4 वर्षीय अंडर ग्रेजुएट कार्यक्रम समेत अपनी कई आपत्तियों को दर्ज कराते हुए डूटा ने भी मंगलवार को दिल्ली विश्वविद्यालय में वीसी कार्यालय के बाहर अपना विरोध प्रदर्शन किया। डूटा का कहना है कि यह विरोध अकादमिक काउंसिल, स्थाई समिति की बैठक के साथ-साथ विश्वविद्यालय की सड़कों पर भी जारी रहेगा। डूटा की कोषाध्यक्ष प्रोफेसर आभा देव हबीब ने कहा की 4 वर्षीय अंडर ग्रेजुएट पाठ्यक्रम छात्रों एवं शिक्षण संस्थानों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ बढ़ाएगा, इसलिए इसका व्यापक विरोध किया जा रहा है।
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Source : IANS