एक बहुत ही मशहूर शेर है. तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, मैं एक शाम चुरा लूं अगर बुरा न लगे. लेकिन दिल्ली की आबोहवा क्या है यह किसी से छुपा नहीं है. दिल्ली में प्रदूषण का कहर जारी है. लोगों को इससे निजात मिलने की कोई संभावनाएं नहीं दिख रही है. दिल्ली के लोग इस दंश को झेल रहे हैं. जहां एक तरफ लोगों का दम घुट रहा है, वहीं सरकार इस मुद्दे पर ब्लेम गेम कर रही है. सब अपनी जिम्मेदारी को छोड़ दूसरों पर ठीकरा फोड़ रहे हैं. बीजेपी अरविंद केजरीवाल सरकार पर सारा दोष मढ़ रही है. वहीं केजरीवाल इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को सहयोग नहीं करने का आरोप लगा रही है. इन सबके बीच जनता पीस रही है.
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वहीं अगर डॉक्टरों की माने तो उसका कहना है कि इस दिल्ली में मत आओ. दिल्ली अब रहने की जगह नहीं है. लोग अस्थमा की चपेट में आ गए हैं. लोगों को सांस लेने में काफी दिक्कत हो रही है. डॉक्टरों ने लोगों की सलाह दी है कि जो लोग दीपावली-छठ में गांव गए हैं वो अभी दिल्ली न आएं. इसके अलावा जो लोग दिल्ली बीमारी का इलाज कराने आना चाहते हैं, अगर बीमारी स्थिर है ज्यादा परेशानी नहीं है तो अभी न आएं. अगर ऐसा करते हैं तो यह मर्ज और बढ़ जाएगा. इसलिए दिल्ली आने से फिलहाल परहेज करें.
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आजादी के समय में एक बहुत पुराना नारा हुआ करता था. दिल्ली चलो! लेकिन अब ऐसा लगता है दिल्ली छोड़ो का नारा ज्यादा कारगर है. दिल्ली में लोग दो वक्त की रोटी के लिए पैसे कमाने आते हैं. दूर-दूर के लोग दिल्ली कूच कर रहे हैं. लेकिन दिल्ली की आबोहवा अब जिंदगी नहीं मौत दे रही है. ऐसी मौत जो समय से पहले मिल रही है. सरकार इस मुद्दे से बेखबर लग रही है. समय बीत जाने के बाद मुद्दे भी ठंडे बस्ते में चले जाते हैं. लेकिन सरकार को कुछ तो करना चाहिए. लोगों की जिंदगी से ऐसे खिलवाड़ नहीं करना चाहिए. लोगों की भी जिम्मेदारी बनती है कि पर्यावरण को बचाने की मुहिम में आगे आएं.