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दिल्ली मेट्रो।( Photo Credit : फाइल फोटो)
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भारत आज विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है. लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जिनके कारण हम चाहे जितना आगे निकल जाएं. फिर भी पूरी दुनिया हमें पिछड़ेपन से देखेगी.
दिल्ली मेट्रो।( Photo Credit : फाइल फोटो)
भारत आज विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है. लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जिनके कारण हम चाहे जितना आगे निकल जाएं. फिर भी पूरी दुनिया हमें पिछड़ेपन से देखेगी. आज के समय में जब पूरी दुनिया में कचरा प्रबंधन पर बहस हो रही है उस समय हम कचरे को जस्टबिन में डालने जैसी बेसिक समझ लोगों में पैदा कर रही हैं. दिल्ली एनसीआर में मेट्रो ट्रेन लोगों के जीवन का अहम हिस्सा है. लेकिन मेट्रो के कुछ बहुत ही बेसिक नियम हैं जिन्हें लोग नहीं मानते हैं. आज हम बता रहे हैं दिल्ली मेट्रो से जुड़े कुछ ऐसे ही नियमों के बारे में जिन्हें हर भारतीय को मानना चाहिए.
मेट्रो में चढ़ना उतरना जानना बहुत जरूरी है. पूरी दुनिया में जब भारत के लोग किसी और देश में घूमने जाते हैं तो वो देखते होंगे कि आखिर लोग कितनी आसानी से चढ़-उतर रहे होते हैं. वहीं दिल्ली मेट्रो का हाल ये है कि एक तरफ लोग उतर नहीं पाते हैं और दूसरी तरफ चढ़ने का प्रयास करते हैं. कई बार चढ़ने वालों की भीड़ इतनी होती है कि उतरने वाले अपने स्टेशन से आगे चले जाते हैं. चढ़ने वाले लोगों का उत्साह तो ऐसा होता है जैसे उनके सामने खड़ी मेट्रो ही अंतिम है. वैसे यही हाल बसों और ट्रेनों में भी देखने को मिलता है. मेट्रो में लगातार अनाउंसमेंट होती रहती है कि पहले ट्रेन से आने वाले यात्रियों को उतरने दें.
दिल्ली मेट्रो में बहुत से स्टीकर लगे हैं. जिन पर लिखा है कि खाना पीना मना है. हममें से बहुत से लोग सोचते हैं कि आखिर ये नियम क्यों बना है. इस नियम को बनाने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण है. कारण यह है कि खाने पीने के दौरान लोग गिरा देते हैं. जिससे गंदगी फैलती है. इतना ही नहीं कई बार खाने का टिफिन जब खुलता है तो महक पूरे बोगी में फैल जाती है. हो सकता है कि किसी को वह पसंद न हो. इसलिए यह नियम बनाया गया है. ताकि दूसरों को असुविधा न हो.
कई बार लोग मेट्रो की फर्श पर बैठे हुए दिख जाते हैं. जबकि दिल्ली मेट्रो में यह चीज साफ तौर से मना है. दिल्ली मेट्रो इस नियम को लेकर इतनी सख्त है कि कई जगहों पर औचक निरीक्षण करके जुर्माना भी लगाया जाता है. यह नियम इस लिए बनाया गया है कि ताकि खड़े होने वाले लोगों को असुविधा न हो. साथ ही जितनी जगह पर दो लोग खड़े हो सकते हैं उतनी जगह पर एक व्यक्ति बैठ पाता है.
मेट्रो में बहुत से लोग होते हैं जो आपस में बात करते हैं. वहीं कुछ ऐसे लोग होते हैं जो आपस में बात तो करते हैं लेकिन दूसरों को भी सुना रहे होते हैं. फोन पर भी बात करते वक्त वो लोग तेज आवाज में बात करते हैं. जिसके कारण बहुत से लोग डिस्टर्ब होते हैं. मेट्रो में बहुत से लोग समय बिताने के लिए किताब पढ़ते रहते हैं. वह भी डिस्टर्ब हो जाते हैं.
हर मेट्रो में गाड़ी की गति की दिशा में पहला डिब्बा महिलाओं के लिए आरक्षित होता है. इसके साथ ही हर डिब्बे में महिलाओं, दिव्यांगों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए आरक्षित सीटें होती हैं. लेकिन कई बार लोग इन आरक्षित सीटों को खाली देख कर खुद बैठ जाते हैं. महिलाओं की सीट पर पुरुष बैठ जाते हैं. लेकिन हद तब हो जाती है जब ये लोग बिना मांगे सीट नहीं देते.
'भाई थोड़ी जगह बना लो', मेट्रो में सफर करते वक्त अगर आपको सीट मिल गई है तो आपको ये बात सुनने को मिली होगी. मेट्रो में एक सीट पर जितने लोग हैं कई बार उससे ज्यादा लोग बैठने का प्रयास करते हैं. अगर 8 लोगों की क्षमती वाली सीट है तो उस पर 9 लोग बैठने का प्रयास करेंगे. 1 व्यक्ति अपनी सुविधा के लिए 8 लोगों को असुविधा देता है. कई बार लोग जगह न होते हुए भी अपने दोस्तों को बैठाने लगते हैं. जिससे बाकी के यात्रियों को असुविधा होती है. इस समस्या की वजह से कई बार नौबत मार-पीट तक पहुंच गई है. इसके लिए इंटरनेट पर बहुत से वीडियो मिल जाएंगे.
हालांकि मेट्रो में और भी बहुत सी दिक्कतें देखने को मिलती हैं. उन पर फिर कभी बात होगी. लेकिन यह बेसिक 6 दिक्कतें हैं जिन्हें लोग जाने-अनजाने में खुद ही बढ़ा देते हैं.
Source : योगेंद्र मिश्रा