दिल्ली हाई कोर्ट बुधवार को मैरिटेल रेप को आपराधिक कृत्य बनाने के लिए दायर की गई विभिन्न याचिकाओं के विरोध में एक एनजीओ की दलीलों पर सुनवाई करेगा।
एनजीओ लिंग कानूनों के कथित दुरूपयोगों से पीड़ित पुरुषों का प्रतिनिधित्व कर रहा है और इसने कोर्ट में पहले से एक याचिका दायर कर रखी है।
आपको बता दें कि 28 अगस्त को कोर्ट ने एनजीओ, पुरुष कल्याण ट्रस्ट के द्वारा हस्तक्षेप आवेदनों को मंजूरी दी थी और इन सभी को कोर्ट के सामने संबोधित करने को कहा था, ताकि इस मामले में दूसरे पहलु भी सामने आ सके।
मैरिटल रेप या वैवाहिक दुष्कर्म पति- पत्नी के बीच बिना एक- दूसरे की सहमति से किया गया शारीरिक संबंध है। इसको लेकर मंगलवार को ही केन्द्र सरकार ने भी दिल्ली हाई कोर्ट में तर्क दिया था कि इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।
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केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है, 'अगर पति द्वारा पत्नी के साथ किए जाने वाले सभी यौन संबंधों को मैरिटल रेप की तरह माना जाने लगेगा तो मैरिटल रेप का फैसला सिर्फ और सिर्फ पत्नी के बयान पर निर्भर होकर रह जाएगा।'
इसके अलावा केन्द्र ने कहा, सवाल यह है कि ऐसी परिस्थिति में अदालत किन सबूतों को आधार बनाएगी, क्योंकि पति और पत्नी के बीच यौन संबंध का कोई अंतिम सबूत नहीं हो सकता।
एनजीओ ने भी कहा है कि यह मुद्दा बड़ी संख्या में उन पुरुषों को प्रभावित करेगा, जो महिलाओ के द्वारा प्रताड़ित होने से कमजोर हैं और साथ ही जो झूठे रेप केस और घरेलू हिंसा मामलों के शिकार हैं।
एनजीओ ने यह भी कहा है कि शादी के अंदर अगर कोई व्यक्ति या महिला अपने साथी को सेक्स करने की अनुमति देता है, तो इसे रेप में शामिल नहीं किया जाएगा।
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HIGHLIGHTS
- 28 अगस्त को कोर्ट ने एनजीओ, पुरुष कल्याण ट्रस्ट के द्वारा हस्तक्षेप आवेदनों को मंजूरी दी थी
- यह मुद्दा उन पुरुषों को प्रभावित करेगा, जो महिलाओ के द्वारा प्रताड़ित होने से कमजोर हैं: एनजीओ
Source : News Nation Bureau