पत्नी से जबरन संबंध बनाने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया ऐसा फैसला

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के मुद्दे पर एक खंडित फैसला सुनाया, जिसमें से एक न्यायाधीश ने प्रावधान को खत्म करने का समर्थन किया, जबकि दूसरे ने इसे असंवैधानिक नहीं माना.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के मुद्दे पर एक खंडित फैसला सुनाया, जिसमें से एक न्यायाधीश ने प्रावधान को खत्म करने का समर्थन किया, जबकि दूसरे ने इसे असंवैधानिक नहीं माना.

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Iftekhar Ahmed
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Delhi High court

पत्नी से जबरन संबंध बनाने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया ऐसा फैसला( Photo Credit : File Photo)

दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi Highcourt) ने बुधवार को वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) के अपराधीकरण के मुद्दे पर एक खंडित फैसला सुनाया, जिसमें से एक न्यायाधीश ने प्रावधान को खत्म करने का समर्थन किया, जबकि दूसरे ने इसे असंवैधानिक नहीं माना. इसके साथ ही खंडपीठ ने दोनों पक्षों को सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने के लिए कहा है. गौरतलब है कि इस मामले की सुनवाई कर रहे खंडपीठ की अध्यक्षता करने वाले न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने पत्नी से जबरन संबंध बनाने को वैवाहिक बलात्कार मानने वाले अपवाद को रद्द करने का समर्थन किया. वहीं, न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने कहा कि आईपीसी के तहत यह अपवाद असंवैधानिक नहीं है और यह एक तर्कसंगत अंतर पर आधारित है.

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धारा 375 के तहत वैवाहिक बलात्कार अपराध नहीं
याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी की  धारा 375 (बलात्कार) के तहत वैवाहिक बलात्कार अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी थी कि यह उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करती है, जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है. आईपीसी की धारा 375 में दिए गए अपवाद के तहत अगर पत्नी नाबालिग नहीं है तो  एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना या यौन क्रिया करने को बलात्कार नहीं माना गया है.

दोनों जजों ने रखे अलग-अलग मत
न्यायमूर्ति शकधर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जहां तक मेरा सवाल है तो मैं धारा 375 के अपवाद 2 और धारा 376 (ई)... और संविधान के 21 और इसलिए इसे रद्द कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि यह घोषणा की तारीख से प्रभावी होगी. हालांकि, न्यायमूर्ति शंकर ने कहा कि मैं अपने विद्वान भाई से सहमत नहीं हूं और कहा कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए), और 21 का उल्लंघन नहीं करते हैं. उन्होंने कहा कि अदालतें लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित विधायिका के दृष्टिकोण के लिए अपने व्यक्तिपरक मूल्य निर्णय को प्रतिस्थापित नहीं कर सकती हैं और अपवाद एक तर्कसंगत अंतर पर आधारित है.

केंद्र के जवाब के बिना ही सुनाया फैसला
गौरतलब है कि इस वर्ष फरवरी में केंद्र ने अदालत से परामर्श प्रक्रिया के बाद इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखने के लिए और समय देने का आग्रह किया था. इस पर कोर्ट ने कहा था कि इस मामले को इस तरह से लटकाया नहीं जा सकता है. लिहाजा, सरकार के अनुरोध को पीठ ने इस आधार पर ठुकरा दिया था कि इतने लंबे समय से चल रहे मामले को अंतहीन रूप से स्थगित करना संभव नहीं है.

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केंद्र ने अपने हलफनामे में अपराध मानने को किया था विरोध
दरअसल, अपने 2017 के हलफनामे में केंद्र ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों का विरोध करते हुए कहा था कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक अपराध नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि यह एक ऐसी घटना बन सकती है,जो विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकती है और पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन सकती है.

HIGHLIGHTS

  • वैवाहिक बलात्कार पर जजों में नहीं बनी सहमति
  • दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच ने दिया खंडित फैसला
  • अब मामले पर सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई
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