दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को उस याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा, जिसमें यह अनिवार्य करने का निर्देश देने की मांग की गई है कि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पहली पत्नी की लिखित सहमति मिलने पर ही दोबारा शादी कर सकता है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की खंडपीठ 28 वर्षीय एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे जनहित याचिका (पीआईएल) के रूप में दायर किया गया था।
महिला रेशमा ने यह दावा करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि उसे उसके पति मोहम्मद शोएब खान ने तीन तलाक बोलने के बाद छोड़ दिया था और अब उसे डर है कि वह दूसरी महिला से शादी करने की योजना बना रहा है।
उसने कहा कि उसकी शादी 2019 में हुई थी और उसका 11 महीने का एक बच्चा है।
अधिवक्ता बजरंग वत्स के माध्यम से दायर याचिका में केंद्र से एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा शरीयत कानून के तहत अनुबंधित द्विविवाह या बहुविवाह को विनियमित करने के लिए कानून बनाने का निर्देश देने और यह घोषणा करने की मांग की गई है कि कोई पति अपनी सभी पत्नियों की देखभाल समान रूप से करने के लिए बाध्य है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस्लामिक देशों में भी शरिया कानून का पालन करते हुए दूसरी शादी की अनुमति केवल असाधारण परिस्थितियों में दी जाती है, जैसे पहली पत्नी की बीमारी या बच्चे पैदा करने में असमर्थता।
याचिका में कहा गया है, द्विविवाह या बहुविवाह न तो अनिवार्य है और न ही प्रोत्साहित किए जाने लायक है, फिर भी अनुमति दी जाती है। कुरान बहुविवाह के लिए सशर्त समर्थन देता है, जिस पर जोर देकर स्वार्थ या यौन इच्छा के कारण किए जाने वाले बहुविवाह की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
इसमें आगे कहा गया है कि बहुविवाह की अनुमति केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही दी जाती है, जैसे कि जब किसी पुरुष की मौत के कारण उसकी पत्नी के पास कोई और सहारा नहीं बचा हो।
पीठ ने कहा, सभी पत्नियां अलग-अलग रहने की हकदार हैं .. यह प्रस्तुत किया जाता है कि न्यायविद अपने विचार में एकमत हैं कि इस्लामी समाजों में बहुविवाह की अनुमति है, लेकिन केवल कुछ परिस्थितियों में। मुख्य रूप से ऐसी परिस्थितियों में, जब किसी पुरुष की मौत के बाद विधवाओं के पास कोई साधन या सहयोग देने वाला नहीं होता।
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Source : IANS