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1984 सिख दंगा: सज्जन कुमार पर फैसला पढ़ते हुए कही गई High Court की ये 10 बातें कांग्रेस को हमेशा चुभेंगी

ज़ाहिर है कि यह फ़ैसला तब आया है जब मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नीत सरकार की ताज़पोशी की जा रही है.

Updated on: 17 Dec 2018, 01:55 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1984 के सिख विरोधी दंगा मामले में सोमवार को कांग्रेस नेता सज्जन कुमार और अन्य को दोषी करार दिया है और उन्हें (सज्जन) आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. अदालत ने सज्जन कुमार से 31 दिसंबर तक आत्मसमर्पण करने के लिए कहा है. न्यायाधीश एस. मुरलीधर और न्यायाधीश विनोद गोयल की खंडपीठ ने ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को बदल दिया है जिसने कांग्रेस नेता को बरी कर दिया था.

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा की 31 अक्टूबर 1984 के हुई हत्या के बाद दिल्ली के सैन्य छावनी क्षेत्र में पांच लोगों की हुई हत्या के मामले में सज्जन कुमार और पांच अन्य पर मुकदमा चल रहा था.

ज़ाहिर है कि यह फ़ैसला तब आया है जब मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नीत सरकार की ताज़पोशी की जा रही है.

आइए एक नज़र डालते हैं सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा कही गई बड़ी बातों पर- 

  1. यह एक असाधारण केस था, जहां सामान्य हालात में सज्जन कुमार के खिलाफ कार्रवाई करना असंभव हो रहा था.
  2. क्योंकि ऐसा लग रहा था, जैसे उनके खिलाफ केसों को दबाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे थे.
  3. सज्जन के ख़िलाफ़ केस तक रिकॉर्ड नहीं किया जा रहा था.
  4. यह आज़ादी के बाद की सबसे बड़ी हिंसा थी. इस दौरान पूरा तंत्र फेल हो गया था. 
  5. यह हिंसा राजनीतिक फायदे के लिये करवाई गई थी. सज्जन कुमार ने दंगा भड़काया था.
  6. 1947 की गर्मियों मे विभाजन के दौरान भयंकर नरसंहार हुआ था जिसमें बहुत सारे लोग मारे गए.
  7. उस घटना के ठीक 37 साल बाद दिल्ली एक बार फिर से ऐसे ही नरसंहार का गवाह बना.
  8. आरोपियों ने इस मामले में राजनीतिक संरक्षण का फ़ायदा उठाया और जांच से बच गए.
  9. 1993 में हुआ मुंबई दंगा, 2002 का गुजरात दंगा, 2008 का कंधमाल हिंसा और 2013 में हुई मुजफ़्फरनगर हिंसा में अल्पसंख्यकों का नरसंहार किया गया.
  10. इन सभी मामलों में अपराधियों ने राजनीतिक संरक्षण का भरपूर फ़ायदा उठाया और सज़ा से बच गए. अफ़सोस है.

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