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10 सितंबर को राफेल को वायुसेना में शामिल करेंगे राजनाथ, फ्रांस को भी न्योता

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 10 सितंबर को हरियाणा के अंबाला हवाई अड्डे पर भारतीय वायु सेना (IAF) में पांच राफेल लड़ाकू विमानों को औपचारिक रूप से एक समारोह में शामिल करेंगे.

Updated on: 28 Aug 2020, 11:00 AM

नई दिल्ली:

फ्रांस से खरीदे गए राफेल (Rafale) लड़ाकू विमानों को औपचारिक रूप से 10 सितंबर को भारतीय वायु सेना (आईएएफ) में शामिल किया जाएगा. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) 10 सितंबर को हरियाणा के अंबाला हवाई अड्डे पर भारतीय वायु सेना (IAF) में पांच राफेल लड़ाकू विमानों को औपचारिक रूप से एक समारोह में शामिल करेंगे. जिसके लिए फ्रांसीसी रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पैली को भी आमंत्रित किया जाएगा.

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न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार, रक्षा सूत्रों ने बताया कि यह समारोह रूस से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की वापसी के बाद आयोजित किया जाएगा. रक्षा मंत्री रूस में 4 से 6 सितंबर तक शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के रक्षा मंत्रियों की बैठक में शामिल होने वाले हैं.

सूत्र ने कहा, 'राफेल लड़ाकू विमान का अधिष्ठापन औपचारिक रूप से शामिल करने वाला समारोह 10 सितंबर को आयोजित होगा, जिसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचेंगे. फ्रांस के रक्षा मंत्री को भारत और फ्रांस के बीच रणनीतिक दोस्ती को चिह्नित करने के लिए इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए निमंत्रण भेजा जा रहा है.'

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उल्लेखनीय है कि पांच राफेल लड़ाकू विमान 29 जुलाई को फ्रांस से भारत पहुंचे थे. देश में 24 घंटों के भीतर व्यापक प्रशिक्षण शुरू कर दिया गया था. फ्रांसीसी मूल के लड़ाकू विमान वायु सेना के 17 गोल्डन एरो स्क्वाड्रन का हिस्सा हैं. लद्दाख क्षेत्र में लड़ाकू विमान पहले ही उड़ान भर चुके हैं. और देश के विभिन्न हिस्सों में उड़ान भरने वाले इलाके से परिचित रहे हैं. देश में जो पांच राफेल पहुंचे हैं, उनमें तीन सिंगल-सीट और दो डबल-सीट शामिल हैं.

राफेल में हवा से हवा और हवा से जमीन पर मार करने की क्षमता है. राफेल में लगीं हैमर मिसाइल के बाद ऐसी उम्मीद हबै कि इसकी लंबी दूरी की हिट क्षमताओं के कारण दक्षिण एशियाई आसमान में अपने पारंपरिक विरोधी चीन और पाकिस्तान पर भारतीय वायुसेना को बढ़त मिल जाएगी.

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ज्ञात हो कि भारत ने करीब 60,000 करोड़ रुपये की लागत से फ्रांस से 36 राफेल खरीदने का अनुबंध किया है, जिसमें से अधिकांश भुगतान फ्रांसीसी फर्म डसॉल्ट एविएशन को पहले ही किया जा चुका है. इस सौदे पर सितंबर 2016 में मनोहर पर्रिकर के साथ रक्षा मंत्री के रूप में हस्ताक्षर किए गए थे. 2018-2019 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस सौदे का बचाव करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जब विपक्ष ने पिछले साल अप्रैल-मई में आम चुनावों से पहले परियोजना में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया.