सुप्रीम कोर्ट ने देश में आधार कार्ड की अनिवार्यता के खिलाफ दाखिल याचिका को तुंरत सुनने से इनकार कर दिया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ये जरूर कहा है कि आधार कार्ड के लिए निजी संस्था से लोगों का डाटा इकट्ठा करवाना कोई अच्छा विचार नहीं है।
देश के चीफ जस्टिस जे एस खेहर की अध्यक्षता में जजों की एक बेंच ने कहा अभी इस मुद्दे पर तुरंत सुनवाई करना संभव नहीं है। लेकिन किसी निजी संस्था से बॉयोमेट्रिक तरीके से लोगों की निजी जानकारी इकट्ठा करवाना बहुत अच्छा विचार नहीं है।
आधार कार्ड से जुड़ी इस याचिका को वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने किसी सुप्रीम कोर्ट कोर्ट में दायर किया था। याचिका में वकील श्याम दीवान ने कहा था कि आधार कार्ड के माध्यम से सरकार लोगों की निजी जानकारी पर नजर रख रही है जो संविधान के मुताबिक निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
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साल 2015 में आधारा कार्ड पर ही हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को राहत देते हुए मनरेगा, पेंशन, जनधन योजना, और पेंशन में अकाउंट में आधार कार को लिंक करने की इजाजत दे दी थी। लेकिन इसे कोर्ट ने स्वैच्छिक रखने का आदेश दिया था।
सरकार एलपीजी सब्सिडी और गरीबों के खातें में तमाम योजनाओं के तहत मिलने वाले पैसे को पहुंचाने के लिए आधार कार्ड को जरूरी बताया था। सरकार ने इसके पीछे दलील थी कि खाते को आधार कार्ड से लिंक करने पर भ्रष्टाचार तो कम होगा ही इसके साथ पैसा भी सीधे गरीबों के हाथों में पहुंचेगा।
आधार कार्ड स्कीम को यूपीए सरकार ने साल 2009 में शुरू किया था। इसमें देश के हर नागरिक की पूरी जानकारी को बॉयमेट्रिक तकनीक की मदद से सुरक्षित किया जाता है और उस व्यक्ति को एक 12 नंबरों का कोड दिया जाता है जो उस व्यक्ति की पहचान होती है।
Source : News Nation Bureau