लोकसभा (Parliament) में सोमवार को विपक्षी सदस्यों के विरोध के बीच लोकसभा में बांध सुरक्षा विधेयक-2019 पेश किया गया, जिसमें बांधों की निगरानी, निरीक्षण, चौकसी, निरीक्षण, परिचालन और रखरखाव संबंधी प्रावधान करता है. विधेयक इन बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत प्रणाली का भी प्रावधान करता है. निचले सदन में जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उक्त विधेयक पेश किया. विधेयक पेश किए जाने का कई विपक्षी सदस्यों ने विरोध किया और इसे राज्यों के अधिकार क्षेत्र और संविधान के विरुद्ध करार दते हुए विधेयक को संसद की स्थायी समिति अथवा प्रवर समिति के पास भेजने की मांग की.
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विपक्ष की आपत्तियों को निर्मूल करार देते हुए जल शक्ति मंत्री शेखावत ने कहा कि देश में पांच हजार से अधिक बड़े बांध हैं और इनमें से 92 फीसदी अंतरराज्यीय दायरे में आते हैं, इसलिए यह विधेयक लाना उचित है. उन्होंने कहा कि देश में 293 बांध ऐसे हैं जो 100 साल से ज्यादा पुराने हैं. बांधों की सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण क्योंकि एक बांध में दरार आने पर उसका जानमाल का बहुत नुकसान होता है.
मंत्री ने कहा, 1980 के दशक में केरल मुल्लपेरियार बांध में दरार आने पर केंद्रीय जल आयोग के पास शिकायत आई थी जिसके बाद एक समिति बनाई है. समिति ने कहा कि देश में बांधों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रोटोकॉल की जरूरत है. उन्होंने कहा कि 2002 में पहली बार विधेयक लाया गया. इस विधेयक में ऐसा कुछ नहीं है जो राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दखल हो.
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कांग्रेस के गौरव गोगोई ने कहा कि यह विधेयक राज्यों से बिना विचार-विमर्श के लाया गया है और इसमें मुआवजे का उचित प्रावधान नहीं है, इसलिए वह इसका विरोध कर रहे हैं. आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने कहा कि बांध सुरक्षा को लेकर विधेयक पारित करना राज्य विधानसभाओं के अधिकार क्षेत्र में आता है. राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दखल देना उचित नहीं है.
कांग्रेस के शशि थरूर ने आरोप लगाया कि यह विधेयक राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दखल है. इसमें पर्यावरण पर प्रभाव और संबंधित पक्षों की परिभाषा भी स्पष्ट नहीं है. बीजू जनता दल के बी महताब ने कहा, हर कोई इससे सहमत है कि बांधों की सुरक्षा होनी चाहिए, लेकिन यह सुरक्षा कौन करेगा? यह राज्यों का विषय है और उनके अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए.
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सदन में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस विधेयक को देश के संघीय ढांचे पर प्रहार करार देते हुए कहा कि सरकार को इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति के पास भेजना चाहिए. तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने की मांग की और कहा कि राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं दिया जाना चाहिए. कांग्रेस के मनीष तिवारी ने भी कहा कि यह राज्यों का विषय है और केंद्र सरकार को यह विधेयक नहीं लाना चाहिए. भाजपा के निशिकांत दुबे ने विपक्षी सदस्यों की आपत्तियों को खारित करते हुए कहा कि यह विधेयक प्रक्रियागत रूप से लाया गया है और इसमें राज्यों के अधिकार क्षेत्र में कोई दखल नहीं है.
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि बांध महत्वपूर्ण आधारभूत संरचनाएं हैं जिसका सिंचाई, विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, पेयजल और औद्योगिक प्रयोजनों एवं इसके बहुद्देश्यीय उपयोगों के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया जाता है. कोई असुरक्षित बांध मानव जीवन, पारिस्थितकी और सार्वजनिक एवं निजी परिसम्पत्तियों के लिए संकट का कारण बन सकता है, इसलिए बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाना राष्ट्रीय उत्तरदायित्व बन जाता है.
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बांध सुरक्षा विधेयक 2019 में राष्ट्रीय बांध सुरक्षा कमिटी की स्थापना की बात कही गई है. यह समिति बांध सुरक्षा संबंधी नीति विकसित करेगी और ऐसे विनियमों की सिफारिश करेगी जो उस प्रयोजन के लिये उपेक्षित हो. बांधों की समुचित निगरानी, निरीक्षण और अनुरक्षण के लिए नीति, मार्गदर्शन सिद्धांत और मानकों के क्रियान्वयन के लिए और दो राज्यों के राज्य बांध सुरक्षा संगठनों के बीच या किस राज्य के राज्य बांध सुरक्षा संगठन और उस राज्य में से बांध स्वामी के बीच किसी मुद्दे का समाधान करने के लिए एक विनियामक निकाय के रूप में राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकार की स्थापना की बात कही गई है. इसमें राज्य बांध सुरक्षा संगठन की स्थापना की भी बात कही गई है.