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भारत बंद के दौरान हुई हिंसा (पीटीआई)
SC/ST एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के बदलाव के खिलाफ दलित संगठनों के भारत बंद के दौरान हुई हिंसा में न केवल लोग मारे गए, बल्कि सार्वजनिक संपत्तियों को भारी नुकसान हुआ है।
व्यापक पैमाने पर हुई हिंसा और आगजनी के बाद केंद्र सरकार ने सफाई देते हुए कहा कि वह देश में अनसूचित जातियों और जनजातियों की सुरक्षा के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, 'सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है और उन्हें कानून का समुचित संरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है।'
सिंह ने कहा कि सरकार देश में रहने वाले सभी अनसूचित जातियों और जनजातियों को पूर्ण कानूनी संरक्षण देने का आश्वासन देती है।
वहीं केंद्र की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दायर पुनर्विचार याचिका में सरकार ने माना है कि कोर्ट का हालिया आदेश SC/ST एक्ट को लेकर संसद की सोच के खिलाफ है। केंद्र ने कहा है कि 2016 में संसद की इस सिफारिश पर इस कानून और ज़्यादा सख्त बनाया गया था।
नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए केंद्र ने कहा है कि देश में SC/ST समुदाय के खिलाफ उत्पीड़न के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
2016 में 47,338 केस दर्ज हुए इनमें से केवल 24.9% मामलों में ही सज़ा हो पाई। वहीं 89.3% मामले 2016 के आखिर तक लंबित थे। ऐसे में SC/ST समुदाय को यह भरोसा दिलाना ज़रूरी है कि शुरुआती जांच की आड़ में आरोपी गिरफ्तारी से नहीं बच पायेगा।
तेजी से हिंसक हुआ देशव्यापी आंदोलन
हालांकि सरकार के आश्वासन से पहले स्थिति नियंत्रण से बाहर जा चुकी थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ शुरू हुआ दलितों का आंदोलन देखते-देखते उपद्रव में तब्दील हो गया और इसमें कुल 9 लोगों की जान चली गई।
आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 6 जबकि उत्तर प्रदेश में 2 लोगों की मौत हो गई। वहीं राजस्थान में एक व्यक्ति पुलिस की गोली से मारा गया।
इस दौरान आगजनी और पथराव की कई घटनाओं में सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचा।
हिंसा के बढ़ते दायरे को देखकर गृह मंत्रालय ने जहां राज्यों से संपर्क बहाल कर उन्हें कानून-व्यवस्था को हर हाल में बनाए रखने का आदेश दिया, वहीं आंदोलन को लेकर केंद्र और विपक्षी दलों के बीच सियासी घमासान भी देखने को मिला।
इस पूरे विवाद की जड़ रहे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार ने सोमवार को पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी। हालांकि सरकार का यह फैसला आंदोलन को रोकने में विफल रहा।
गुजरात, पंजाब, राजस्थान, झारखंड, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और ओडिशा नें प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच भिड़ंत हुई जबकि हिंसा और आगजनी के कारण राज्यों में सामान्य हालात बिगड़ते दिखाई दिए।
तेजी से हिंसा के बढ़ते दायरे को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पंजाब की मांग पर तत्काल एक्शन लेते हुए उन्हें तत्काल सीआरपीएफ और आरएएफ की टुकड़ियां मुहैया कराईं।
मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, 'गृह मंत्रालय पूरे मामले पर करीब से निगाह जमाए हुए है और लगातार राज्यों के संपर्क में है। इसके साथ ही उनकी मदद के लिए केंद्रीय बलों को उपलब्ध कराया गया है।'
मंत्रालय ने कहा कि केंद्रीय बलों को तैयार रखा गया है और जैसे ही कोई राज्य इनकी मांग करते हैं, उन्हें तत्काल मदद दी जाएगी।
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पंजाब में दुकानें, शैक्षिक संस्थान व अन्य प्रतिष्ठान बंद रहे। राज्य में एहतियातन 10वीं व 12वीं कक्षाओं की परीक्षाएं स्थगित कर दी गईं। राज्य की करीब 2.8 करोड़ आबादी में सबसे ज्यादा 32 फीसदी दलित हैं।
दलितों की बड़ी आबादी वाले राज्य पंजाब में प्रदर्शन अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहा।
बंद को बीएसपी सुप्रीमो मायावती का समर्थन
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री एवं बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती ने इस आंदोलन को समर्थन देते हुए बीजेपी पर जमकर निशाना साधा।
उन्होंने कहा कि बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के अथक प्रयासों से जो अधिकार पिछड़े और दलित वर्ग को मिले हैं, बीजेपी उन्हें छीनना चाहती है।
मायावती ने हालांकि प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा को नाजायज ठहराया है।
उन्होंने कहा, 'बीएसपी आंदोलन का समर्थन करती है, लेकिन इस दौरान हुई हिंसा को जायज नहीं ठहराती।'
मायावती ने कहा कि कुछ जातिवादी लोग दलित और पिछड़े लोगों की आड़ में इस आंदोलन को हिंसक बना रहे हैं। उन्होंने पुलिस प्रशासन से ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की है।
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उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पिछड़ा और दलित विरोधी होने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी कथनी और करनी में फर्क का ही परिणाम है कि आज लोग सड़क पर उतरे हैं।
केंद्र ने दाखिल की पुनर्विचार याचिका
इस बीच केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को वापस लेने के लिए पुनर्विचार याचिका कर दी, जिसमें अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत शिकायत दर्ज कराने पर आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं करने का आदेश दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अपने एक आदेश में कहा था कि पुलिस इस एक्ट के तहत दर्ज शिकायत पर कार्रवाई करने से पहले उसकी सत्यता का पता लगाने के लिए जांच करेगी।
केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए तर्क से सहमत नहीं है।
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HIGHLIGHTS
- SC/ST एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के बदलाव के खिलाफ दलित संगठनों के भारत बंद के दौरान व्यापक हिंसा
- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कुल 9 लोगों की मौत, कई इलाकों में लगाया गया कर्फ्यू
Source : News Nation Bureau