तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा के लिये रविवार का दिन काफी भावुकता भरा रहा। उन्होंने असम में उस व्यक्ति से मुलाकात की जिसने उन्हें 1959 में चीन के हमले के बाद भारत आने में मदद की थी।
नमामि ब्रहमपुत्र समारोह के अवसर पर दलाई लामा ने असम राइफल के रिटायर जवान नरेन चंद्र दास से को गले लगा लिया। नरेन असम राइफल के उन पांच जवानों में से एक थे जिन्होंने उन्हें तिब्बत से भागने में मदद की थी।
भावुक दलाई लाम ने उनसे मुलाकात के बाद कहा, 'बहुत-बहुत धन्यवाद, असम राइफल्स के पुराने सदस्य से मिलकर मैं बहुत खुश हुआ। जिसने मुझे 58 साल पहले बचा कर भारत पहुंचाया।' उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा, 'आपके चेहरे को देखकर मुझे एहसास हो रहा है कि मैं भी कितना बूढ़ा हो गया हूं।'
इस मुलाकात की तस्वीरें केंद्रीय गृह राज्यमंत्री रिजिजू ने लिखा, 'आंसू नहीं रूकते। 58 साल पहले खुद को सुरक्षा देने वाले जवान से गले मिलते दलाई लामा।'
तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद दलाई लामा अपने समर्थकों के साथ मार्च, 1959 में भारत आए थे, तब नरेन चंद्र दास समेत असम राइफल्स के 5 जवानों ने उन्हें सुरक्षा प्रदान की थी।
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इस दौरान असम राइफल्स की ड्रेस में कार्यक्रम में शामिल हुए 76 वर्षीय नरेन दास ने बताया कि दलाई लामा के भारत आगमन के दौरान उन्होंने सुरक्षा दी थी। 1957 में वह असम राइफल्स में भर्ती हुए थे। वो उस समय भारत-चीन स्थित लुंगला चौकी पर तैनात थे।
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जब नरेन से पूछा गया कि क्या दलाई लामा को लाते समय उनसे बात की थी। तो उन्होंने कहा कि बात करने की इजाज़त नहीं थी सिर्फ उन्हें सुरक्षित लाने का आदेश था। दलाई लामा ने नरेन दास को सिल्क की एक शॉल भी भेंट की।
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Source : News Nation Bureau