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सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों में 17% की उछाल, SC में रिपोर्ट पर सुनवाई

जो अपराध के साथ राजनीतिक गठजोड़ का एक सबूत है. इसे रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट पिछले पांच साल से कोशिश कर रही है. धन और बाहुबल की वजह से निर्वाचित प्रतिनिधि मामले को विलंबित करने में सफल हो जाते हैं. 

Updated on: 10 Aug 2021, 07:43 AM

highlights

  • निर्वाचित प्रतिनिधियों के लंबित क्रिमिनल केस में 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी
  • जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू
  • विशेष अदालत की स्थापना कर तुरंत सुनवाई की मांग की गई

नई दिल्ली :

राजनीति में अपराधियों का कितना बोलबाला है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दो साल से भी कम वक्त में लंबित क्रिमिनल केस में 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. मौजूदा, पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों में दो साल से भी कम वक्त में 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. जो अपराध के साथ राजनीतिक गठजोड़ का एक सबूत है. इसे रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट पिछले पांच साल से कोशिश कर रही है. धन और बाहुबल की वजह से निर्वाचित प्रतिनिधि मामले को विलंबित करने में सफल हो जाते हैं. 

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर नौ महीने बाद सुनवाई फिर से शुरू की. सुनवाई के पूर्व संध्या पर विशेष अदालतों की स्थापना करके सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों में तुरंत सुनवाई की मांग की गई. न्याय मित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ मुकदमे की स्थिति की निराशाजनक तस्वीर पेश करने वाली एक रिपोर्ट प्रस्तुत की.

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सोमवार को अधिवक्ता स्नेहा कलिता की सहायता से रिपोर्ट सौंपी गई. रिपोर्ट में हंसारिया ने कहा कि दिसंबर 2018 में मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की संख्या 4,122 थी. सितंबर 2020 में यह बढ़कर 4,859 हो गया है, दो साल से भी कम समय में 17% की बढ़ोतरी दर्ज की है. 
उन्होंने 54-पृष्ठ की रिपोर्ट में कहा.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 16 सितंबर, 6 अक्टूबर और 4 नवंबर को सीबीआई समेत केंद्रीय एजेंसियों को जांच किए जा रहे लंबित मामलों की स्थिति रिपोर्ट देने का आदेश दिया था. हंसारिया ने कहा कि बार-बार निर्देश देने के बावजूद केंद्र ने ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं दी है.

हंसारिया ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट बार-बार केंद्र सरकार से विशेष अदालतों में केंद्रीय वित्त पोषित वीडियो-कॉन्फ्रेंस सुविधाओं के बारे में पूछ रहा था, जो विशेष रूप से वर्तमान और पूर्व निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों की कोशिश करने के लिए स्थापित किया गया था, लेकिन उसने अभी तक अपने फैसले को नहीं बताया है.

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इसके साथ ही न्याय मित्र ने राज्य सरकारों द्वारा अपनी पार्टी के सांसदों और विधायकों, यहां तक ​​कि गंभीर अपराधों के लिए दर्ज मामलों को वापस लेने का प्रयास करने की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि यूपी सरकार ने चुने हुए प्रतिनिधियों के खिलाफ 76 मामले वापस लेने की मांग की है, जिसमें संगीत सोम, कपिल देव, सुरेश राणा और साध्वी प्राची के खिलाफ मुजफ्फरनगर दंगा मामले शामिल हैं.

हंसरिया ने 1 जनवरी, 2020 से पहले दर्ज किए गए कार्यकर्ताओं के खिलाफ राजनीतिक मामलों को वापस लेने के लिए महाराष्ट्र सरकार के कदम पर पिछले साल 17 दिसंबर को प्रकाशित एक रिपोर्ट का हवाला दिया.