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कुतुब मीनार में पूजा का अधिकार मिलेगा या नहीं 9 जून को कोर्ट करेगा तय

हिंदू पक्ष की ओर से कुतुब मीनार में पूजा के अधिकार की मांग वाली याचिका पर साकेत कोर्ट 9 जून को अपना फैसला सुनाएगा. कोर्ट ने मंगलवार की सुनवाई के बाद दोनों ही पक्षों को 9 जून से पहले लिखित जवाब दाखिल करने के लिए कहा है.

Updated on: 24 May 2022, 02:45 PM

highlights

  • एएसआई ने की पूजा के अधिकार वाली याचिका को खारिज करने की मांग
  • हिंदू पक्ष ने 27 मंदिरों के अवशेषों से मस्जिद बनाने की रखी दलील
  • दोनों पक्षों से लिखित जवाब आने के बाद कोर्ट 9 जून को सुनाएगा फैसला

नई दिल्ली:

हिंदू पक्ष की ओर से कुतुब मीनार में पूजा के अधिकार की मांग वाली याचिका पर साकेत कोर्ट 9 जून को अपना फैसला सुनाएगा. कोर्ट ने मंगलवार की सुनवाई के बाद दोनों ही पक्षों को 9 जून से पहले लिखित जवाब दाखिल करने के लिए कहा है. जवाब दाखिल होने के बाद 9 जून को कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा. गौरतलब है कि इससे पहले निचली अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि पूजा करने वालों को अपने धर्म का अधिकार जरूर है, लेकिन ये absolute right नहीं है. इस मामले में पूजा का अधिकार नहीं है.

हिंदू पक्ष और एएसआई रखे अपने तर्क
 कुतुब मीनार में पूजा के अधिकार की मांग वाली हिंदू पक्ष की याचिका को एएसआई ने कोर्ट से खारिज करने की मांग की. एएसआई ने कहा कि
कुतुब मीनार पूजा का स्थान नहीं है. जब कुतुब मीनार को एक स्मारक के रूप में घोषित किया गया था, तब यहां पर इस तरह की कोई गतिविधि कभी मौजूद नहीं थी. ASI ने हरिसंकर जैन की याचिका को ख़ारिज करने की मांग करते हुए एएसआई ने कहा कि यह एरिया स्मारक अधिनियम द्वारा चलती है. इस पर कोर्ट ने कहा कि मुझे लगता है कि महत्वपूर्ण सवाल यह होगा कि इमारत का चरित्र क्या है, इस पर बात होनी चाहिए. इस पर एएसआई ने कहा कि स्मारक वर्षों पहले बनाया गया था. किसी भी बदलाव के लिए कोई अनुरोध या याचिका इससे पहले कभी नहीं आये थे. अभी हाल ही में ये बातें सामने आई है.  ASI ने आगे कहा कि किसी स्मारक का स्वरूप वही रहेगा, जो अधिग्रहण के वक्त था. लिहाजा, कुछ स्मारक में पूजा की इजाजत है, कुछ में नहीं, क्योंकि ये अधिग्रहण के वक़्त की स्थिति  से तय होता है.

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मस्जिद का निर्माण मंदिरों के अवशेष से हुआ, लेकिन तोड़कर नहीं
 इसके साथ ही अपनी दलील में एएसआई ने कहा कि मस्जिद पर की गई नक्काशी बताते हैं कि मस्जिद का निर्माण 27 मंदिरों के अवशेष से बने थे. लेकिन ये कहीं नहीं लिखा है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर किया गया था.

हिंदू पक्ष ने रखी ये दलीलें
इस मामले याचिका दायर करने वाले हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने कहा कि निचली अदालत ने मेरे मामले को साबित करने की लिए हमें सबूत देने का मौका नहीं दिया . उन्होंने कहा कि सबूत देने का उचित मौका देने से पहले ही मुकदमा खारिज कर दिया गया. जैन ने कहा कि 800 सालों से भी ज़्यादा वक़्त से यहां कुवतुल इस्लाम मस्जिद में नमाज नहीं पढ़ी गई. वहीं, उन्होंने कहा कि एक बार मंदिर बन जाए तो वह हमेशा एक मंदिर होता है, देवता का अधिकार और उनकी दिव्यता हमेशा के लिए रहती है. इसके जवाब में  ASI के वकील सुभाष गुप्ता ने कहा कि अयोध्या फैसले में भी कहा गया है कि अगर कोई स्मारक हैं तो उसका चरित्र नहीं बदला जा सकता है.