Coronavirus (Covid-19) : महाराष्ट्र सरकार ने प्लाज़्मा थेरेपी को लेकर लिया अहम फैसला
कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के लिए ठीक हो चुके लोगों का प्लाज्मा वरदान बनकर उभरा है. मरीजों को ठीक हो चुके लोगों का प्लाज्मा चढ़ाया जा रहा है, जिससे उनकी हालत में सुधार देखा जा रहा है.
नई दिल्ली:
कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के लिए ठीक हो चुके लोगों का प्लाज्मा वरदान बनकर उभरा है. मरीजों को ठीक हो चुके लोगों का प्लाज्मा चढ़ाया जा रहा है, जिससे उनकी हालत में सुधार देखा जा रहा है. अब यह प्लाज्मा थेरपी मुंबई में इस्तेमाल करने का फैसला महाराष्ट्र सरकार ने लिया है. देश में कोरोना वायरस (Corona Virus) का प्लाज्मा थेरेपी (Plazma Therepy) का पहला परीक्षण सफल रहा है. दिल्ली के एक निजी अस्पताल में भर्ती मरीज पर प्लाज्मा तकनीक का इस्तेमाल किया गया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मरीज को सोमवार को वेंटिलेटर से हटा दिया गया, उसके बाद भी मरीज की हालत बेहतर बताई जा रही है. अस्पताल में एक ही परिवार के कई लोग बीमार होने के बाद भर्ती हुए थे, जिनमें दो वेंटिलेटर पर थे. वेंटिलेटर पर रखे एक मरीज की मौत हो गई थी. बचे दूसरे मरीज पर प्लाज्मा थेरेपी का परीक्षण हुआ.
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डॉक्टरों के अनुसार, एक व्यक्ति के खून से अधिकतम 800 मिलीलीटर प्लाज्मा लिया जा सकता है. वहीं, कोरोना मरीज के शरीर में एंटीबॉडीज (Anti Bodies) डालने के लिए 200 मिलीलीटर प्लाज्मा चढ़ाते हैं. डॉक्टरों के अनुसार, इलाज में प्लाज्मा तकनीक कारगर साबित हो चुकी है. इस तकनीक में रक्त उससे लिया गया था, जो तीन सप्ताह पहले ही ठीक हो चुका है. दो दिन पहले ही केंद्रीय दवा नियामक ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने कोविड-19 के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी के क्लीनिकल ट्रायल की मंजूरी दी थी. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) की ओर से तय प्रोटोकॉल के तहत ट्रायल किया गया.
प्लाज्मा थेरेपी कैसे काम करती है?
हाल ही में बीमारी से उबरने वाले मरीजों के शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम से एंटीबॉडीज बनता है, जो ताउम्र रहते हैं. ये एंटीबॉडीज प्लाज्मा में मौजूद रहते हैं. इसे दवा में तब्दील करने के लिए ब्लड से प्लाज्मा को अलग किया जाता है और बाद में एंटीबॉडीज निकाली जाती है. ये एंटीबॉडीज नए मरीज के शरीर में इंजेक्ट की जाती हैं इसे प्लाज्मा डेराइव्ड थैरेपी कहते हैं. ये एंटीबॉडीज शरीर को तब तक रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है, जब तक शरीर खुद इस लायक न बन जाए.
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क्या हैं एंटीबॉडीज?
एंटीबॉडीज प्रोटीन से बनीं खास तरह की इम्यून कोशिकाएं होती हैं. इसे बी-लिम्फोसाइट भी कहते हैं. शरीर में कोई बाहरी चीज (फॉरेन बॉडीज) के आते ही ये अलर्ट हो जाती हैं. बैक्टीरिया या वायरस द्वारा रिलीज किए गए विषैले पदार्थों को निष्क्रिय करने का काम यही एंटीबॉडीज करती हैं. कोरोना से उबर चुके मरीजों में खास तरह की एंटीबॉडीज बन चुकी हैं. अब इसे ब्लड से निकालकर दूसरे संक्रमित मरीज में इजेक्ट किया जाएगा तो कोरोना वायरस के संक्रमण से मुक्त हो जाएगा.
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कब तक शरीर में रहेंगी एंटीबॉडीज?
एंटीबॉडी सीरम देने के बाद कोरोना मरीज के शरीर में 3 से 4 दिन तक रहेंगी. इतने समय में मरीज रिकवर हो सकेगा. चीन और अमेरिका की रिसर्च के अनुसार, प्लाज्मा का असर शरीर में 3 से 4 दिन में दिख जाता है. सबसे पहले कोरोना सर्वाइवर की हेपेटाइटिस, एचआईवी और मलेरिया जैसी जांच की जाएगी, तभी रक्तदान की अनुमति दी जाएगी. रक्त से जिस मरीज का ब्लड ग्रुप मैच करेगा, उसका ही इलाज किया जाएगा.
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