भारत में कोरोना वायरस की स्थिति को लेकर हुए एक अध्ययन के मुताबिक कोरोना वायरस का संक्रमण जून महीने में अपने चरम पर होगा. इस स्टडी में कहा गया है कि अभी जो हालात हैं वो देश में कोविड 19 महामारी का सबसे व्यापक स्वरूप नहीं है. इस महीने भी महामारी अपने चरम पर हो सकती थी. लेकिन लॉकडाउन के कारण एक महीने की देरी हुई है. आइए जानते हैं कि इस अध्ययन में क्या निकल कर आ रहा है.
जानें स्टडी के बारे में
कोलकाता बेस्ट इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस यानी आईएसीएस ने कोविड-19 की गति और लॉकडाउन के असर को समझने के लिए जो स्टडी की है उसमें कहा गया है कि लॉकडाउन के कारण देश में महामारी को चरम पर पहुंचने के वक्त को एक महीने टाला जाना संभव हो सका है. इसलिए बेहतर तैयारियों के लिए और वक्त मिल पाया है.
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स्टडी बायो कंप्यूटैशन मॉडलिंग पर आधारित है, जिसमें संक्रमण की दरों में लगातार आए बदलावों के आधार पर अच्छे और बुरे समय के बारे में आकलन किया गया है. संवेदनशील-संक्रमित-रिकवरी-मृत्यु यानी SIRD मॉडल को स्टडी का आधार बनाया गया है.
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इस स्टडी में मॉडल के कर्व और रिप्रोडक्शन नंबर के ट्रेंड के आधार पर कहा गया है कि जून के आखिर तक संक्रमण का दौर चरम पर पहुंच जाएगा. तब करीब डेढ़ लाख लोग संक्रमित हो सकते हैं.
रिप्रोडक्शन नंबर क्या है
इस स्टडी में अभी रिप्रोडक्शन नंबर 2.2 पाया गया है. यानी 10 लोग औसतन 22 और लोगों को संक्रमित कर रहे हैं. यहीं रिप्रोडक्शन नंबर है, जिसके जून के आखिर में कम होकर 0.7 रह जाने का अनुमान लगाया जा रहा है.
लॉकडाउन ने कम की रफ्तार
इस स्टडी के अनुमानों की मानें तो लॉकडाउन का पालन देश भर में नहीं किया जाता, तो संक्रमण अपने चरम पर मई के अंत तक आ सकता था. इस अध्ययन के बारे में एक मॉडल यह भी है कि अगर 3 मई को लॉकडाउन पूरी तरह से हटा लिया जाता तो संक्रमण की दर तेजी से बढ़ सकती थी.
Source : News Nation Bureau