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मप्र : किसान आंदोलन में सियासी तकरार

मप्र : किसान आंदोलन में सियासी तकरार

Updated on: 27 Sep 2021, 08:45 PM

भोपाल:

संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा सोमवार को सभी गैर-भाजपा दलों के समर्थन के साथ बुलाए गए भारत बंद का मध्य प्रदेश में मिलाजुला असर रहा। इस बंद को लेकर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और भाजपा के बीच जमकर तकरार हुई।

किसानों ने सोमवार को भारत बंद का आह्वान किया। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष अनिल यादव ने बताया है कि राज्य में किसानों ने अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया। राजधानी में किसानों को करोंद मंडी तक जाने से रोकने के लिए बैरिकेड लगाए गए थे। किसानों ने अपनी मांगों और सरकार की नीतियों के खिलाफ खुलकर विरोध दर्ज कराया।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी किसानों के आदेालन में प्रदर्शन किया और केंद्र सरकार पर जमकर बरसे। उन्होंने कहा कि कृषि कानून बनाने से पहले किसानों की राय नहीं ली गई। ये कानून कुछ बड़े कारोबारियों को लाभ पहुंचाने के लिए हैं। इन कृषि कानूनों में किसानों से अदालत में जाने का अधिकार तक छीन लिया गया है।

वहीं भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा का कहना है कि प्रदेश में किसानों के नाम पर आंदोलन करने का जो असफल प्रयास किया गया, वास्तव में यह किसानों का आंदोलन नहीं था। यह तो कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों और उनके नेताओं का अस्तित्व बचाने का संघर्ष था। अप्रासांगिक होते जा रहे ये दल और नेता इस आंदोलन की आड़ में अपना अस्तित्व बचाने का प्रयास कर रहे थे।

प्रदेशाध्यक्ष शर्मा ने कहा कि किसानों को भ्रमित करने की कोशिश में लगे कांग्रेस के कमल नाथ और दिग्विजय सिंह जैसे नेता न तो किसान हैं और न ये किसानों के हितैषी हैं। इन्होंने कर्जमाफी के नाम पर किसानों से धोखा किया। कमल नाथ मुख्यमंत्री रहते कभी किसानों से मिलने नहीं गए। मैं इन नेताओं से पूछना चाहता हूं कि प्रदेश के किसानों को बिजली, सड़क और पानी किसने दिया? दिग्विजय सिंह ने तो प्रदेश का बंटाढार कर दिया था। न प्रदेश में सड़कें बची थीं और न बिजली-पानी मिल पाता था। ये किसान हितैषी नहीं हैं।

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