राज्यपाल कलराज मिश्र की जीवनी पर विवाद, बिना ऑर्डर खरीदने को बाध्य किया
राजभवन में हुए विमोचन समारोह में राज्यपाल कलराज मिश्र के साथ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी और सीएम अशोक गहलोत के अलावा सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपति भी शामिल हुए.
नई दिल्ली :
राज्यपाल कलराज मिश्र की जीवनी 'कलराज मिश्रः निमित्त मात्र हूं मैं' का 1 जुलाई को राजभवन में विमोचन किया गया था. राजभवन में हुए विमोचन समारोह में राज्यपाल कलराज मिश्र के साथ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी और सीएम अशोक गहलोत के अलावा सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपति भी शामिल हुए. विमोचन समारोह के बाद प्रदेश के सभी 27 सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को बिना आर्डर किताबों के 68-68 हजार के बिल थमा दिए. आपको बता दें कि 27 सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को बिना आर्डर राज्यपाल की जीवनी खरीदने बाध्य किया. किताब का विमोचन होते ही प्रकाशक ने कुलपतियों को 68-68 हजार के बिल थमा दिए. हालांकि पूरे प्रकरण में राजभवन ने साफ कहा किताब की बिक्री में हमारा रोल नहीं है.
राज्यपाल की जीवनी के निजी प्रकाशक ने खुद को विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय की संस्था बताया था. राज्यपाल कलराज मिश्र की जीवनी की किताब विमोचन के तीसरे ही दिन विवादों में आ गई है. जीवनी के कंटेंट से लेकर उसके बेचने के तरीके पर विवाद शुरू हो गया है. राज्यपाल की जीवनी के प्रकाशक ने इसका विमोचन होते ही प्रदेश के सभी सरकारी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को बिना आर्डर ही 19-19 किताबें बिना आर्डर दे दीं, और साथ में 68-68 हजार के बिल भी थमा दिए. जीवनी में बीजेपी ज्वायन करने की अपील का फोटो है उस पर भी सवाल उठ रहे हैं.
बिना आर्डर राज्यपाल की जीवनी का बिल थमाया
प्रकाशक ने कुलपतियों को दिए गए बिल में राज्यपाल की जीवनी की हर कॉपी की कीमत 10 फीसदी डिस्काउंट के बाद 3599 रुपए रखी. 19 किताबों के हिसाब से हर कुलपति को 68,383 रुपए का बिल थमाया गया. हर विश्वविद्यालय को 68,383 के हिसाब से 27 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को प्रकाशक ने कुल 18.46 लाख रुपए की किताबें बिना आर्डर जबरन विश्वविद्यालयों को दे दी.
विवाद पर राजभवन ने दी सफाई
राज्यपाल की जीवनी पर विवाद होने के बाद अब राजभवन ने ट्वीट कर सफाई दी है. राजभवन ने लिखा है 1 जुलाई को राजभवन में लोकार्पित कलराज मिश्र-निमित्त मात्र हूं मैं पुस्तक के विपणन के संबंध में कतिपय समाचार प्रसारित हुए है. यह मुख्य रूप से प्रकाशक आईआईएमई, शोध संस्थान और खरीदने वाले के मध्य की निजी जानकारियां हैं? प्रकाशक ने पुस्तक प्रकाशित कर राजभवन में उसके लोकार्पण की अनुमति मांगी थी, जो उन्हें दी गयी. पर पुस्तक के विपणन की व्यावसायिक गतिविधियों में राजभवन की कोई भूमिका, किसी प्रकार की संबद्धता नहीं है.
प्रकाशक ने किताब में खुद को भारत सरकार का शोध संगठन बताया
राज्यपाल की जीवनी का प्रकाशन एक गैर सरकारी संस्था इंटरनेशल इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट एंड इंटरप्रन्योरशिप ने किया है. कॉफी टेबल बुक फार्मेट में लिखी गई इस किताब में प्रकाशक ने संस्था के बारे भ्रामक और गलत दावा किया है. प्रकाशक ने आईआईएमई संस्था को भारत सरकार की संस्थाा बता दिया. प्रकाशक ने लिखा— आईआईएमई राष्ट्रीय स्तर का शोध संस्थान जो भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय का वैज्ञानिक एवं औद्योगिक शोध संगठन है.
राज्यपाल की जीवनी वैज्ञानिक शोध कैसे?
राज्यपाल की जीवनी के प्रकाशक ने खुद को वैज्ञानिक एवं औद्योगिक शोध संगठन बताया है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि राज्यपाल की जीवनी वैज्ञानिक और औद्योगिक शोध नहीं हो सकती, किसी की जीवनी मानविकी से जुड़ा विषय है. बिना खरीद की प्रक्रिया अपनाए विश्विद्यालयों को सीधे जीवनी खरीदने को बाध्य करने पर भी सवाल खड़े किए सरकारी विश्वविद्यालयों में किताबों की खरीद की एक तय प्रक्रिया है, उसके लिए बाकायदा परचेज कमेटी होती है,उस प्रक्रिया का पालन किए बिना खरीद नहीं हो सकती. यहां तो प्रकाशक संस्था ने सीधे कुलपतियों को ही बिल भेज दिए. इस पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. जनवरी में भी प्रकाशक संस्था ने राजभवन का हवाला देकर सभी 27 सरकारी विश्वविद्यालयों को 2-2 कॉफी टेबल बुक भेजी थीं. उस वक्त भी प्रकाया संस्था ने सभी कुलपतियों को चिट्ठी लिखकर जल्द बिल भुगतान करने को कहा था. अब उसी संस्था ने राज्यपाल की जीवनी छापकर बिना तय प्रक्रिया अपनाए ही सभी विश्वविद्यालयों को भेज दी.
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