कांग्रेस पार्टी के लिए हाथ में आया एक सुनहरा मौका उस वक्त निकल गया, जब शनिवार को उसने 12 घंटे तक चले लंबे विचार-विमर्श के बाद पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान एक बार फिर सोनिया गांधी को सौंप दी. पार्टी के पास मौका था कि वह वंशवाद के टैग को हटा सकती थी, नए एवं युवा चहरों को पार्टी में पदों पर स्थान दे सकती थी, लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया और एक बार फिर पार्टी की पुरानी रक्षक ने पार्टी के अध्यक्ष पद पर बाजी मारी.
यह भी पढ़ेंः बदायूं: महिला जिला अस्पताल में पिछले 50 दिनों में 32 बच्चों की जान गई
शनिवार को 12 घंटे से अधिक लंबे विचार-विमर्श ने कांग्रेस समर्थकों को आशा दी थी कि एक नया चेहरा सामने आएगा. पार्टी के पास कुछ युवा तुर्क हैं जो बुद्धिमान हैं, सक्षम हैं, बहुत कड़ी मेहनत करते हैं और भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है. वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राजनीतिक हमलों का जवाब देने में सक्षम हैं और साथ ही सरकार को घेरने का दम रखते हैं.
इन नेताओं में ज्योतिरादित्य सिंधिया, मुकुल वासनिक, सचिन पायलट, मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम शामिल है. ये सभी क्षमतावान हैं और पार्टी के प्रति समर्पित हैं. हालांकि, सोनिया गांधी के करीबी पुरानी ब्रिगेड के नेता जिनमें अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद शामिल हैं, उन्होंने सोनिया को गिरती सेहत के बावजूद अंतरिम अध्यक्ष के रूप में लौटने के लिए राजी कर लिया.
यह भी पढ़ेंः क्रिकेटरों पर डोपिंग के सभी नियम लागू कर पाना नाडा के सामने बड़ी चुनौती, जानें क्यों?
सुबह कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक के बाद एक संभावित नेता के नाम पर विचार-विमर्श करने के लिए पांच क्षेत्रवार उपसमूहों का गठन किया गया था, यह तथ्य राहुल गांधी के ग्रैंड ओल्ड पार्टी से वंशवाद के टैग को हटाने के दृढ़ संकल्प का संकेत था, लेकिन वहां भी वफादारों की जीत हुई. पार्टी में सुबह देखे गए उत्साह के विपरीत शाम तक सारा जोश खत्म हो गया और बदलाव देखने के इच्छुक लोगों ने खुद को अकेला पाया. निष्ठावान गुट उनसे आगे निकल गया.
8.30 बजे दूसरी कांग्रेस कार्य समिति शुरू होने से पहले, उपसमूहों द्वारा 'राहुल गांधी' को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपने का राग शुरू हो गया. एक नेता के रूप में राहुल गांधी पिछले कुछ वर्षों में परिपक्व हुए हैं, उन्होंने पुरानी ब्रिगेड की मांगों को मानने से इनकार कर दिया. सीडब्ल्यूसी कई वफादारों से भरी हुई है, जिनमें से ज्यादातर 75 वर्ष की आयु से अधिक हैं और पार्टी के भीतर अपने विशेषाधिकारों के बारे में भयंकर रूप से सुरक्षात्मक हैं.
यह भी पढ़ेंः घुटने की सर्जरी कराने के बाद सुरेश रैना ने लिखा भावुक संदेश, जानें क्या कहा
ऐसे वफादारों ने राहुल से सीडब्ल्यूसी के दौरान शनिवार सुबह एक बार फिर से अपना इस्तीफा वापस लेने की अपील की थी. लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद मई में राहुल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. इस्तीफा वापस लेने से उनके बार-बार इनकार की खबरें आती रही रहीं. राहुल गांधी पार्टी में को नया रूप देने और युवा सोच व जोश के पक्षधर हैं, लेकिन पुरानी ब्रिगेड में ऐसी चाहत नहीं दिखती.
सीडब्ल्यूसी की बैठक में शाम को राहुल गांधी एक घंटा देर से पहुंचे. तब तक वह जान चुके थे कि बैठक किस ओर जा रही है. पुरानी ब्रिगेड यह जान चुकी थी कि अब राहुल गांधी नहीं मानने वाले, इसलिए उन्होंने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया. अधिकांश लोग सोनिया गांधी को यह भरोसा दिलाने में कामयाब रहे कि वह फिर से कार्यभार संभालें नहीं तो उनके नेतृत्व के बिना पार्टी गर्त में चली जाएगी.
Source : आईएएनएस