कांग्रेस को बैठे-बिठाए मिल रहीं राज्‍य सरकारों में हिस्‍सेदारी, पार्टी उसी को मान रही उपलब्‍धि

पिछले दो महीनों में राजनीतिक हलकों में ऐसा कुछ हुआ, जिससे कांग्रेस (Congress) की बिन मांगी मुराद पूरी हो गई. यूं कहें कि कांग्रेस बैठे-बिठाए बिना कुछ किए धरे दो राज्‍यों में सत्‍तानशीन हो गई.

पिछले दो महीनों में राजनीतिक हलकों में ऐसा कुछ हुआ, जिससे कांग्रेस (Congress) की बिन मांगी मुराद पूरी हो गई. यूं कहें कि कांग्रेस बैठे-बिठाए बिना कुछ किए धरे दो राज्‍यों में सत्‍तानशीन हो गई.

author-image
Sunil Mishra
एडिट
New Update
कांग्रेस को बैठे-बिठाए मिल रहीं राज्‍य सरकारों में हिस्‍सेदारी, पार्टी उसी को मान रही उपलब्‍धि

कांग्रेस को बैठे-बिठाए मिल रहीं राज्‍य सरकारों में हिस्‍सेदारी( Photo Credit : ANI Twitter)

पिछले दो महीनों में राजनीतिक हलकों में ऐसा कुछ हुआ, जिससे कांग्रेस (Congress) की बिन मांगी मुराद पूरी हो गई. यूं कहें कि कांग्रेस बैठे-बिठाए बिना कुछ किए धरे दो राज्‍यों में सत्‍तानशीन हो गई. महाराष्‍ट्र (Maharashtra) में चुनाव की घोषणा होने से लेकर चुनाव परिणाम घोषित होने तक कांग्रेस के लिए पाने को कुछ भी नहीं था, लेकिन बीजेपी (BJP) और शिवसेना (Shiv Sena) में रार के चलते कांग्रेस न केवल सत्‍ता में भागीदार हो गई बल्‍कि विधानसभा स्‍पीकर (Speaker) सहित कई मंत्रियों के पर भी हथिया लिया. यह हाल तब है, जब महाराष्‍ट्र में कांग्रेस के बड़े नेताओं की रैली के नाम पर केवल राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने एकाध सभाएं की थीं. अब झारखंड (Jharkhand) में भी कांग्रेस सत्‍ता में भागीदार हो गई है, जबकि पार्टी ने इसके लिए उतने संसाधन नहीं झोंके थे.

Advertisment

यह भी पढ़ें : मोदी सरकार जल्‍द ही चीफ ऑफ डिफेंस स्‍टाफ की नियुक्‍ति करेगी, CDS चार्टर भी सामने आएगा

महाराष्‍ट्र की बात करें तो विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को ढंग के प्रत्‍याशी ढूंढे नहीं मिल रहे थे. कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर या तो बीजेपी या फिर शिवसेना में शामिल हो चुके थे. चुनाव में कांग्रेस खुद यह मानकर चल रही थी कि उसके लिए चुनाव में कोई चांस नहीं है. पार्टी के बड़े नेताओं ने इसी नाउम्‍मीदी में बड़ा जलसा भी नहीं किया. जानकार बताते हैं कि राहुल गांधी ने केवल दो रैलियां कीं, वो भी उस नेता के क्षेत्र में, जो 10 जनपथ तक पहुंच रखता था. कांग्रेस के लिए शुभ संयोग तब शुरू हुआ, जब शिवसेना ने बीजेपी से किनारा कर लिया. उसके बाद कांग्रेस के स्‍थानीय नेताओं ने शिवसेना के साथ सरकार में शामिल होने के लिए आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी, जिससे आलाकमान नाराज भी हुआ. लंबी चली जद्दोजहद के बाद महाराष्‍ट्र में शिवसेना और एनसीपी के साथ कांग्रेस की बात बन गई और आज कांग्रेस राज्‍य में सत्‍तासुख भोग रही है.

अब बात करते हैं झारखंड की. चुनाव लड़ने के लिहाज से जरूरी संसाधन कांग्रेस ने झारखंड में भी नहीं झोंके. हां, राहुल गांधी की रैलियां कुछ अधिक हुईं. एकाध रैली प्रियंका गांधी की भी हुई, लेकिन पार्टी ने बीजेपी सरकार की जनता में नाराजगी को भुनाने के लिए कोई अतिरक्‍त मेहनत नहीं की. कांग्रेस थोड़ी मेहनत और करती तो चुनाव परिणाम और बेहतर हो सकते थे. कांग्रेस की उदासीनता का ही परिणाम रहा कि झारखंड मुक्‍ति मोर्चा ने उम्‍मीद से बेहतर प्रदर्शन किया. हालांकि कांग्रेस की सीटें भी पिछली बार की तुलना में बढ़ीं पर यह आंकड़ा और बेहतर हो सकता था.

यह भी पढ़ें : राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को मिली मोदी कैबिनेट की हरी झंडी, तैयार होगा डिजिटल डाटाबेस

हरियाणा में हालांकि कांग्रेस की सरकार नहीं बनी, लेकिन कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्‍व में चुनाव में जबर्दस्‍त वापसी की. राज्‍य में लंबे समय तक कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रोल को लेकर ऊहापोह की स्‍थिति बनी रही. चुनाव से कुछ माह पहले ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सोनिया गांधी ने चुनाव की जिम्‍मेदारी सौंपी और परिणाम अपेक्षा से कहीं बेहतर रहा. दूसरी ओर, राज्‍य में कांग्रेस नेतृत्‍व ने कोई बड़ी रैली नहीं की. सोनिया गांधी की एक रैली प्रस्‍तावित थी, लेकिन अंत समय में उनकी तबीयत खराब होने से आधी-अधूरी तैयारी के बीच राहुल गांधी ने उसे संबोधित किया. इसके अलावा राहुल गांधी ने एक और रैली की थी. अगर कांग्रेस नेतृत्‍व ने पहले ही चुनाव को गंभीरता से लिया होता तो हरियाणा में भी सरकार बन सकती थी.

Source : Sunil Mishra

BJP congress maharashtra Haryana Jharkhand
      
Advertisment