दिग्विजय की मप्र की राजनीति से दूरी बढ़ना तय !
दिग्विजय की मप्र की राजनीति से दूरी बढ़ना तय !
भोपाल 11 नवंबर:
मध्य प्रदेश की कांग्रेस की राजनीति में बड़े बदलाव के संकेत मिलने लगे हैं, क्योंकि कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन की रणनीति बनाने वाली समिति का प्रमुख दिग्विजय सिंह को बनाया गया है और अब दिग्विजय सिंह राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भी नजर आने लगे हैं, जिसके चलते उनकी मध्य प्रदेश की राजनीति से दूरी बढ़ना तय मानी जा रहा है।राज्यसभा सांसद और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सिंह को कांग्रेस ने आंदोलन आयोजन की राष्ट्रीय समिति का अध्यक्ष बनाया है। यह समिति पूरे देश में महंगाई, बेरोजगारी और केंद्र की विफलताओं के खिलाफ जन जागरण अभियान तो चलाएगी ही साथ में आंदोलन भी करेगी। इस समिति ने तय किया है कि देशव्यापी केंद्र सरकार की विफलताओं के खिलाफ जन जागरण अभियान चलाया जाएगा साथ ही महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे को उठाया जाएगा। यह अभियान 14 नवंबर से शुरू हो रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री की राष्ट्रीय स्तर सक्रियता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि उन्होंने पिछले दिनों महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भी एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने आरएसएस के संस्थापक डॉक्टर केबी हेगडेवार की स्मृति में नागपुर में बने स्मारक में राष्ट्रीय ध्वज फहराए जाने से रोकने और पुलिस द्वारा ध्वज को अपनी अभिरक्षा में लेने का मामला उठाया है। उन्होंने मांग की है कि 20 साल पहले राष्ट्रीय ध्वज को पुलिस की अभिरक्षा में लिया गया था वह अब भी पुलिस के पास है, लिहाजा राष्ट्रीय ध्वज को सरकारी अलमारी से आजाद किया जाए और युवा समाजसेवी मोहनीश जबलपुरे को यह तिरंगा राष्ट्रीय पर्व पर शहर आने के लिए सौंपा जाए।
कांग्रेस से जुड़े लोगों का कहना है कि, राज्य की राजनीति में दिग्विजय सिंह की मौजूदगी से कई बार गुटबाजी पनप जाती है, वर्तमान दौर में कमलनाथ कांग्रेस को एकजुट रखना चाहते हैं और यह तभी संभव है जब दूसरे बड़े नेता गुटबाजी को हवा न दे, लिहाजा पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री को राज्य की राजनीति से दूर रखना चाहती है और उसी दिशा में उन्हें आंदोलन की समिति का प्रमुख बनाया गया है।
कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि दिग्विजय सिंह खुद मानते हैं कि राज्य में उनके प्रचार करने से कांग्रेस के वोट कम हो जाते हैं, वे स्वयं भी कई बार स्वीकार चुके हैं। यही कारण है कि हाल ही में हुए चार उपचुनाव में उन्हें प्रचार से दूर रखा गया। उम्मीदवारों ने तो उन्हें अपने क्षेत्र में भेजने की भी मांग नहीं की, पूर्व मुख्यमंत्री सिर्फ खंडवा संसदीय क्षेत्र में ही प्रचार करने गए और पृथ्वीपुर में नामांकन भराने की प्रक्रिया के समय मौजूद रहे।
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