दो दशकों से, मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा की राजनीति मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान के नियंत्रण में रही है। लेकिन इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले पार्टी में असंतोष और आंतरिक कलह की बात सामने आ रही है।
मध्य प्रदेश के राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि भाजपा 2003 से सत्ता में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान कभी इतनी असंगठित और नीरस नहीं दिखी, न ही मुख्यमंत्री चौहान इतने कमजोर दिखे। पार्टी में उनका ऐसा दबदबा रहा है कि उनका कोई विश्वसनीय विकल्प सामने नहीं आया है।
विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, बीजेपी में असंतोष के स्वर बुलंद होते जा रहे हैं। वर्षों से चली आ रही गुटबाजी अब सतह पर आ रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ-साथ उनके वफादारों की सरकार और पार्टी में मजबूत प्रभुत्व से, असंतोष और बढ़ा है।
आरएसएस मुख्यालय से सीधे नियुक्त किए गए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी.डी. शर्मा शर्मा गुटों के बीच मतभेदों को दूर करने में असमर्थ रहे हैं। कई नेता खुले तौर पर पार्टी और शर्मा के खिलाफ बयान जारी कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ भी आवाज उठाई जा रही है, खासतौर पर उन लोगों द्वारा, जो उनके भाजपा में आने के बाद अपने राजनीतिक करियर को खतरे में पा रहे हैं।
हालांकि, मध्यप्रदेश भाजपा के पदाधिकारियों ने आईएएनएस से कहा कि, विभिन्न नेता खुद को इस स्थिति में लाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिल सके। उनमें से कुछ ध्यान आकर्षित करने और अपना लक्ष्य हासिल करने के प्रयास में विवादास्पद बयान देते हैं। पार्टी ऐसे सभी बयानों और घटनाक्रमों पर नजर रख रही है और उनसे राजनीतिक तरीके से निपटेगी।
हाल के दिनों में, पूर्व विधायक सत्यनारायण सत्तन, भंवर सिंह शेखावत और हरेंद्रजीत सिंह बब्बू सहित कई भाजपा नेताओं ने भी पार्टी में विभिन्न मामलों को लेकर अपनी नाराजगी जताई है।
एक अन्य पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री दीपक जोशी (पूर्व सीएम स्वर्गीय कैलाश जोशी के बेटे) ने सीएम चौहान पर निशाना साधते हुए हाल ही में कांग्रेस में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ दी और अब बुधनी (सीहोर) से सीएम के खिलाफ कांग्रेस के टिकट की होड़ में हैं।
पिछले महीने, सागर जिले के मंत्री गोपाल भार्गव और सिंधिया के वफादार गोविंद सिंह राजपूत के साथ-साथ दो अन्य विधायक प्रदीप लरिया और शैलेंद्र जैन, वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री भूपेंद्र सिंह (सीएम चौहान के करीबी माने जाते हैं) के खिलाफ उनके विधानसभा क्षेत्रों में उनके अनुचित हस्तक्षेप को लेकर एकजुट हुए।
उधर, विपक्ष में भी गुटबाजी बनी हुई है, लेकिन यह सत्ता पक्ष की हद तक नहीं है। पार्टी के दो वरिष्ठ दिग्गजों दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने विधानसभा चुनाव की कमान संभाल ली है। भारत जोड़ो यात्रा खत्म होने के साथ ही दिग्विजय सिंह ने अपना पूरा ध्यान मध्य प्रदेश पर लगा दिया है। उन्होंने 66 सीटों की कमान संभाली है, जो कांग्रेस लगातार तीन विधानसभा चुनावों में हार गई थी। उन्होंने इन सभी निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा किया है।
पार्टी के कई कार्यकर्ताओं और वरिष्ठ नेताओं ने आईएएनएस से बात की और कहा कि दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने भाजपा को हराने का संकल्प लिया है। हाल ही में जब कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने कमलनाथ को पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बताया, तो दिग्विजय ने कहा था, मध्य प्रदेश के 99 प्रतिशत लोग कमलनाथ को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और दो बार के राज्यसभा सांसद ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, एमपी कांग्रेस में दो मजबूत नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह हैं और वे पार्टी को सत्ता में वापस लाने में सक्षम हैं। यह स्पष्ट है कि मध्य प्रदेश में कोई अन्य नेता नहीं है, जो कमलनाथ के नेतृत्व को चुनौती दे सके।
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Source : IANS