अलपन बंदोपाध्याय पर टकराव और तेज, केंद्र सरकार ने थमाया कारण बताओ नोटिस
कार्मिक मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार अलपन ने मुख्य सचिव के रूप में तीन माह सेवाविस्तार छोड़कर सेवानिवृत्त होने का फैसला केंद्र की कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए ही किया.
highlights
- अलपन बंदोपाध्याय पर टकराव और तेज
- केंद्र सरकार ने थमाया कारण बताओ नोटिस
- DOPT मंत्रालय ने भेजा कारण बताओ नोटिस
नई दिल्ली:
पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार के बीच सियासी टकराव खत्म होता दिखाई नहीं दे रहा है. सोमवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (CM Mamta Banerjee) ने मुख्य सचिव अलपन बंदोपाध्याय (Alapan Bandyopadhyay) को अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त किया था और अब केंद्र ने उनके खिलाफ एक्शन लिया है. सूत्रों के हवाले से मिल रही जानकारी और मीडिया में चल रही खबरों के अनुसार, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को रिपोर्ट करने में विफल रहने पर केंद्र सरकार ने बंदोपाध्याय को कारण बताओ नोटिस भेजकर जवाब मांगा है. बताया जा रहा है कि अलपन ने मुख्य सचिव के रूप में तीन महीने का सेवाविस्तार छोड़कर सेवानिवृत्त होने का फैसला केंद्र की कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए ही किया. सेवाविस्तार की स्थिति में वे मुख्य सचिव के रूप में काम कर रहे होते तो उनके खिलाफ आदेश के अवमानना के आरोप में कार्रवाई हो सकती थी.
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दरअसल, बंद्योपाध्याय के सामान्य सेवानिवृत्ति का विकल्प चुनने का निर्णय तब आया, जब केंद्र ने उन्हें और राज्य सरकार को एक दूसरा पत्र भेजा, जिसमें वरिष्ठ अधिकारी को मंगलवार को नॉर्थ ब्लॉक में रिपोर्ट करने के लिए कहा गया था. केंद्र द्वारा यह प्रतिक्रिया ममता बनर्जी द्वारा पहले भेजे गए पत्र के प्रतिक्रयास्वरुप थी. इस पत्र में मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेटर ऑफ रिकॉल को वापस लेने और बंद्योपाध्याय को अगले तीन महीनों के लिए पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव के रूप में काम जारी रखने की अनुमति देने का आग्रह किया था.
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इससे पहले 28 मई को केंद्र ने बंद्योपाध्याय को पत्र लिखकर 31 मई को सुबह 10 बजे कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को रिपोर्ट करने के लिए कहा था. इसने राज्य सरकार से उन्हें इस उद्देश्य के लिए आवश्यक मंजूरी देने के लिए भी कहा था. मुख्य सचिव को रिहा करने के लिए अनिच्छुक बनर्जी ने सोमवार को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि .मैं विनम्रतापूर्वक आपसे अनुरोध करती हूं कि आप अपने फैसले को वापस ले लें, इस पर पुनर्विचार करें और व्यापक जनहित में नवीनतम तथाकथित आदेश को रद्द करें.
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