पीएम मोदी का सपना कैसे होगा पूरा, जब 'बुनियाद ही कमजोर'

प्राइमरी एजुकेशन की क्वालिटी बढ़ने की बजाय घटती जा रही है. हालत कुछ ऐसे हैं कि क्लास 5 के आधे बच्चे क्लास 2 की किताबे नहीं पढ़ पा रहे हैं.

प्राइमरी एजुकेशन की क्वालिटी बढ़ने की बजाय घटती जा रही है. हालत कुछ ऐसे हैं कि क्लास 5 के आधे बच्चे क्लास 2 की किताबे नहीं पढ़ पा रहे हैं.

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nitu pandey
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पीएम मोदी का सपना कैसे होगा पूरा, जब 'बुनियाद ही कमजोर'

पीएम मोदी का सपना कैसे होगा पूरा, जब बुनियाद ही कमजोर (फाइल फोटो)

पीएम नरेंद्र मोदी देश को ज्ञान का हब बनाना चाहते हैं. दावा किया जा रहा है कि भारत में शिक्षा का स्तर लगातार सुधर रहा है. लेकिन तस्वीर कुछ और ही सामने आ रही है. प्राइमरी एजुकेशन की क्वालिटी बढ़ने की बजाय घटती जा रही है. हालत कुछ ऐसे हैं कि क्लास 5 के आधे बच्चे क्लास 2 की किताबे नहीं पढ़ पा रहे हैं. गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम’ के वार्षिक सर्वेक्षण ‘एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट’ (असर) 2018 के मुताबिक पांचवी क्लास के करीब आधे बच्चे दूसरी कक्षा की किताब भी नहीं पढ़ सकते हैं. जबकि आठवीं कक्षा के 56 फीसदी बच्चे दो अंकों के बीच भाग नहीं दे पाते.

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गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम’ की रिपोर्ट देश के 596 जिलों के 17,730 गांव के 5 लाख 46 हजार 527 छात्रों के बीच किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है. इस रिपोर्ट के मुताबिक 4 बच्चों में से 1 बच्चा साधारण- सा पाठ पढ़े बिना ही आठवीं कक्षा तक पहुंच जाता है.

वहीं, तीसरी क्लास के 20.9 प्रतिशत बच्चों को जोड़-घटाना ठीक से नहीं आता है. सवाल यह है कि आखिर बच्चों का शिक्षा स्तर इतना कमजोर क्यों है. क्या इसके पीछे शिक्षा प्रणाली है?

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इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि स्कूलों में कंप्यूटर के प्रयोग में लगातार कमी आ रही है. मतलब बच्चों की कंप्यूटर शिक्षा की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है. 2010 में 8.6 प्रतिशत स्कूलों में बच्चे कंप्यूटर का इस्तेमाल करते थे. साल 2014 में यह संख्या घटकर 7 प्रतिशत हो गई. जबकि 2018 में यह 6.5 फीसदी पर पहुंच गई.
मतलब स्कूलों में पीएम मोदी के डिजिटल इंडिया के सपने को भी तोड़ने का काम हो रहा है. रिपोर्ट में यह भी समाने आया है कि गांव के स्कूलों में लड़कियों के लिए बने शौचालयों में केवल 66.4 फीसदी ही इस्तेमाल के लायक हैं.

इतना ही नहीं कई ऐसे बेसिक चीजे हैं जो स्कूलों में मौजूद नहीं है. 13.9 प्रतिशत स्कूल में पीने का पानी नहीं है वहीं 11.3 प्रतिशत पानी पीने लायक नहीं है.
स्कूलों की बदतर स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है और बच्चों के भविष्य का साथ कौन खिलवाड़ करता है आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं. सरकारी स्कूलों में जल्दी शिक्षकों की नियुक्तियां नहीं होती हैं, पल्स पोलियो, चुनावी ड्यूटी और जनगणना के काम में शिक्षकों को लगाया जाता है. शिक्षक भर्ती में धांधली होती है और अयोग्य शिक्षकों रख लिया जाता है.

Source : News Nation Bureau

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