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ऑक्सफोर्ड वैक्सीन लगने से होने वाली ब्लड क्लॉटिंग बेहद खतरनाक और घातक: स्टडी

अध्ययन में टीकाकरण के बाद इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया थ्रोम्बोसिस (VITT) के पहले 220 मामलों का अध्ययन किया गया और पता चला कि वीआईटीटी के मामले में मृत्यु दर 22 प्रतिशत है.

Updated on: 13 Aug 2021, 06:41 AM

नई दिल्ली:

ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका (Oxford-AstraZeneca Vaccine) की कोरोना वैक्सीन लगने के बाद  खून में थक्का जमने के मामले वैसे तो कम ही सामने आ रहे हैं लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह काफी खतरनाक साबित हो सकते हैं. पहली बार इस संबंध में किए गए अध्ययन में शीर्ष वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे है. जांच में सामने आया है कि प्लेटलेट कम रहने और खून के थक्के भी ज्यादा बनने पर मौत की आशंका बढ़ जाती है. वहीं, बेहद कम प्लेटलेट और खून के थक्के बनने के बाद रक्तस्राव से यह आशंका 73 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. 

‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित अध्ययन में टीकाकरण के बाद इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया थ्रोम्बोसिस (वीआईटीटी) के पहले 220 मामलों का अध्ययन किया गया और पता चला कि वीआईटीटी के मामले में मृत्यु दर 22 प्रतिशत है.

कम ही आते हैं क्लॉटिंग के मामले 
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय अस्पताल एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट की डॉ सूई पवोर्ड ने कहा, ‘इस बात पर जोर देना जरूरी है कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका टीके के प्रति इस तरह की प्रतिक्रिया बहुत दुर्लभ है.’ पवोर्ड ने कहा, ‘50 साल से कम उम्र की स्थिति में टीका ले चुके 50,000 लोगों में एक में इसके मामले आ सकते हैं. लेकिन हमारे अध्ययन में दिखा है कि वीआईटीटी विकसित होने पर यह खतरनाक होता है. युवाओं और स्वस्थ लोगों में इसकी आशंका बहुत कम है लेकिन मृत्यु दर बुहत अधिक है. विशेष रूप से कम प्लेटलेट और मस्तिष्क में खून का स्राव होने पर यह बहुत घातक होता है.’

भारत में कोविशील्ड कर रहा है उत्पादन 
इस वैक्सीन का उत्पादन भारत में कोविशील्ड के नाम से हो रहा है. रक्त रोग विज्ञान पर समिति ने कहा है कि पिछले तीन से चार हफ्तों से वीआईटीटी का कोई नया मामला नहीं आया है. इससे संकेत मिलता है कि 40 साल से कम उम्र के लोगों को एक वैकल्पिक टीका देने के संबंध में टीकाकरण पर ब्रिटेन की संयुक्त समिति (जेसीवीआई) के निर्णय ने खास भूमिका अदा की है.