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CJI 'खुद में एक संस्था' है और उनके पास बेंच गठित करने का विशेषाधिकार: सुप्रीम कोर्ट

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की शक्ति को लेकर लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को साफ कर दिया है कि सीजेआई 'खुद में एक संस्था' हैं और उन्हें मामलों के बंटवारे और बेंच गठित करने का विशेषाधिकार प्राप्त है।

Updated on: 11 Apr 2018, 09:46 PM

highlights

  • बेंच गठित करने और मामलों के आवंटन की गाइडलाइंस को लेकर याचिका खारिज
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीजेआई को मामलों के बंटवारे और बेंच गठित करने का विशेषाधिकार प्राप्त है
  • इसी साल 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने मास्टर ऑफ रोस्टर को लेकर उठाए थे सवाल

नई दिल्ली:

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की शक्ति को लेकर लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को साफ कर दिया है कि सीजेआई 'खुद में एक संस्था' हैं और उन्हें मामलों के बंटवारे और बेंच गठित करने का विशेषाधिकार प्राप्त है।

बेंचों के गठन और जजों के कामों के आवंटन के लिए गाइडलाइंस की मांग करने वाली याचिका को खारिज करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने कहा कि सीजेआई के खिलाफ 'अविश्वास की धारणा' नहीं बनाई जा सकती है।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा, 'भारत के मुख्य न्यायधीश अपने समकक्षों में प्रथम हैं और मुकदमों के आवंटन और बेंच के गठन का अधिकार उनके पास है।'

बेंच की तरफ से जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'संवैधानिक भरोसे के एक भंडार के तौर पर चीफ जस्टिस स्वयं में एक संस्था हैं। चीफ जस्टिस को जो अधिकार दिया गया है, वह उच्च संवैधानिक अधिकारी के पास निहित है, उसे याद रखा जाना चाहिए।'

कोर्ट का यह फैसला काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि यह उसके खिलाफ है जब 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्टतम जजों ने दीपक मिश्रा पर निशाना साधा था और कहा था कि मामलों का आवंटन सही तरीके से नहीं किया जाता है।

इसमें से एक मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के न्यायाधीश बीएच लोया की रहस्यमय परिस्थिति में हुई मौत से संबंधित याचिका को उचित बेंच को न सौंपे जाने का भी शामिल था।

जस्टिस जे चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी लोकुर और कुरियन जोसेफ ने कहा था कि मुख्य न्यायाधीश 'मास्टर ऑफ रोस्टर' हैं और अपने समकक्षों में प्रथम हैं इसके अलावा वो न हीं कुछ ज्यादा हैं और न कम।

फैसले में कहा गया है कि बेंच का गठन विशेष रूप से चीफ जस्टिस के विशेषाधिकार में निहित है और जो भी चीज चीफ जस्टिस के अधिकार को कम करता है 'वह चीफ जस्टिस के पीठ के गठन व उनके मामलों के आवंटन के विशेष कर्तव्य व अधिकार में अतिक्रमण करता है।'

कोर्ट ने यह फैसला वकील अशोक पांडे की जनहित याचिका को खारिज करते हुए दिया।

अशोक पांडे ने अपनी याचिका में नियम बनाने के लिए तीन न्यायाधीशों की बेंच बनाने की मांग की थी, जिसमें चीफ जस्टिस व उनके दो वरिष्ठतम सहयोगी होने चाहिए, जबकि संविधान बेंच में पांच वरिष्ठतम न्यायाधीश या तीन वरिष्ठतम न्यायाधीश व दो सबसे कनिष्ठ न्यायाधीश होने चाहिए।

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