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कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल-भाव संवाद में चर्चा गालिब के चिराग-ए-दैर की

मिर्ज़ा गालिब ने अपनी बनारस यात्रा के दौरान इस शहर की संस्कृति, लोग और यहां के सौंदर्य पर चिराग-ए-दैर लिखी थी.

Updated on: 04 Jul 2021, 11:35 PM

highlights

  • केएलएफ भाव संवाद ने साहित्य प्रेमियों को गालिब की दुनिया की सैर कराई
  • जिन अहसासों के नाम नहीं होते, उन्हें गालिब अपना नाम दे देते हैं

 

बेंगलुरु:

भले ही लॉकडाउन के बहुत से प्रतिबंधों से हमें राहत मिल गई हो, फिर भी सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को अभी अनुमति नहीं मिली है. दैनिक गतिविधियों के बीच लोगों को साहित्य, संस्कृति और नई सोच से रू-ब-रू कराने के लिए कलिंगा लिटरेचर फेस्टिवल-भाव संवाद लगातार काम कर रहा है. इस कड़ी में केएलएफ भाव संवाद ने साहित्य प्रेमियों को गालिब की दुनिया की सैर कराई. इस दौरान चर्चा हुई मिर्ज़ा गालिब के बनारस पर केंद्रित चिराग-ए-दैर की. जिन अहसासों के नाम नहीं होते, उन्हें गालिब अपना नाम दे देते हैं. कुछ ऐसे लेखक हैं जो गालिब को एक नई जि़ंदगी, एक नया रंग देकर हमारे सामने फिर से जिंदा कर देते हैं. कुलदीप सलिल उन्हीं लेखकों में से एक हैं. पेंग्विन रैंडम हाउस इंडिया ने इनकी एक अनूदित किताब चिराग-ए-दैर प्रकाशित की है.

मिर्ज़ा गालिब ने अपनी बनारस यात्रा के दौरान इस शहर की संस्कृति, लोग और यहां के सौंदर्य पर चिराग-ए-दैर लिखी थी.

कलिंगा लिटरेचर फेस्टिवल-भाव संवाद में लेखक कुलदीप सलिल से चिराग-ए-दैर के अनुवाद के दौरान उनके अनुभव, किताब के विषय और उसकी प्रासंगिकता पर लंबी चर्चा हुई तो पेंग्विन रैंडम हाउस इंडिया की लैंग्वेज पब्लिशर वैशाली माथुर किताब के प्रकाशन से जुड़े अनुभव साझा किए. कार्यक्रम का संचालन लेखिका और पत्रकार पल्लवी रेब्बाप्रगदा ने किया.

कुलदीप सलिल कहते हैं, भले ही गालिब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी रचनाएं, उनके अनगिनत किस्से-कहानी हमारे बीच हैं, जिन्हें हम याद करते हैं, उन पर लंबी चर्चाएं करते हैं.

कुलदीप ने अपने संबोधन में गालिब को कुछ इस तरह याद किया--

ऩग्मा-हा-ए-गम को भी ऐ दिल गनीमत जानिए,

बे-सदा हो जाएगा ये साज-ए-हस्ती एक दिन.

गालिब-ए-खस्ता के बगैर कौन से काम बंद हैं

रोइए जार जार क्या कीजिए हाए हाए क्यूं.

घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बगैर,

जानेगा अब भी तू न मेरा घर कहे बगैर.

चिराग-ए-दैर के अनुवाद पर अपने अनुभव साझा करते हुए कुलदीप कहते हैं, 15-20 साल पहले मैं दीवान-ए-गालिब के अनुवाद पर काम कर रहा था. उस समय मैंने उनसे संबंधित तमाम किताबें और लेख पढ़े. मैंने तमाम जगह चिराग-ए-दैर के बारे में पढ़ा.

कुलदीप कहते हैं कि सेकुलरिज्म पर भारत में एक से एक बढ़कर कविताएं लिखी गई हैं. लेकिन चिराग-ए-दैर की बात ही कुछ और है.

चिराग-ए-दैर लिखे जाने के पीछे के किस्से को शेयर करते हुए कुलदीप कहते हैं, हम सब गालिब की पेंशन के मामले के बारे में जानते हैं. इस मुद्दे पर गालिब को कलकत्ता जाना पड़ा था. उस समय के अंग्रेजी शासन में गालिब को पेंशन मिलती थी. लेकिन किन्हीं कारणों के चलते उनकी पेंशन अटक गई.

अटकी पेंशन को बहाल कराने के लिए गालिब को कलकत्ता का सफर किया. सफर के दौरान वे कई शहरों में ठहरे, उनमें एक बनारस भी था. गालिब ने बनारस के मंदिरों, वहां गलियों, गंगा नदी, बनारस के लोग, वहां की संस्कृति की याद में फारसी में 108 मिसरों की एक मसनवी लिखी. उस मसनवी का नाम रखा-- चिराग-ए-दैर यानी मंदिर का दीप.

बनारस पर लिखे चिराग-ए-दैर को लेखक कुलदीप द बाइबल ऑफ सेकुलरिज्म नाम देते हैं. इसकी वजह बताते हुए वे कहते हैं कि बनारस हिंदुओं का पवित्र तीर्थस्थल है. मान्यताओं के मुताबिक, बनारस में आकर गंगा स्थान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. परमात्मा का आत्मसाथ कर पाते हैं और जन्म-मृत्यु के झंझट से मुक्त हो जाते हैं. एक मुस्लिम होने के नाते भी गालिब को बनारस में पूरा सम्मान और आजादी मिली. वे वहां लोगों से मिले, मंदिर गए, गंगा के किनारों पर लंबा समय बिताया. वे वहां रम गए. गालिब ने बनारस की खूबसूरती और संस्कृति के बारे में लिखा तो वहां की कमियों के बारे में भी खुलकर चर्चा की. ये सभी बातें हमें बनारस के सेकुलरिज्म के बारे में बताती हैं.

कुलदीप कहते हैं कि भले ही गालिब मुसलमान हों, लेकिन वे नियमों को लेकर कट्टर नहीं थे. वे खुलेआम शराब पीते थे और वे रमजान में रोजा भी नहीं रखते थे. इसके बाद भी वे हिंदू और मुसलमानों में खासे लोकप्रिय थे. गालिब के लिए जाति-धर्म में कोई अंतर नहीं था.

कुलदीप कहते हैं चिराग-ए-दैर उनकी पसंदीदा पुस्तक है. और आधुनिक समाज में इसका बहुत ही महत्व है.

पेंग्विन की लैंग्वेज पब्लिशर वैशाली माथुर ने चिराग-ए-दैर के अनुवाद के दौरान आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करते हुए कहा कि चिराग-ए-दैर पारसी में लिखा गया है. देवनागरी पारसी में इसको पढ़ते हुए आप उससे जुड़ाव महसूस करते हैं, भले ही उसका अर्थ समझ में न आए.

वैशाली बताती हैं कि इस किताब पर 2020 में लॉकडाउन शुरू होने से पहले काम शुरू हुआ था, अब जाकर यह किताब की शक्ल में तैयार हुई है.

कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल के संस्थापक रश्मि रंजन परिदा बताते हैं कि केएलएफ भाव संवाद महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान साहित्यिक गतिविधियों को बरकरार रखने के लिए शुरू किया गया था. केएलएफ भाव संवाद वर्चुअल माध्यम से साहित्यक गोष्ठियों का आयोजन करता है. भाव संवाद कार्यक्रमों में दिग्गज साहित्यकार, कलाकार, पत्रकारों को शामिल किया जाता है. इस मंच की लगातार बढ़ती साहित्यिक गतिविधियों को साहित्य प्रेमियों, लेखक और प्रकाशकों का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है.