World Day Against Child Labour 2019: काम छोड़कर सपने कब देखेंगे बच्चे
भारत जैसे देश में जहां बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है वहां बाल मजदूरी बहुत बड़ी समस्या है.
नई दिल्ली:
बाल मजदूरी उन्मूलन के लिए दुनिया भर में आज यानि 12 जून बुधवार को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जा रहा है. भारत जैसे देश में जहां बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है वहां बाल मजदूरी बहुत बड़ी समस्या है. यह समस्या भारत में सदियों से चली आ रही है. जो दिन बच्चों के पढ़ने, खेलने और कूदने के होते हैं, उन्हें बाल मजदूर बनना पड़ता है. इससे बच्चों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है. इतनी जागरूकता के बाद भी भारत देश में बाल मजदूरी का खात्मा दूर-दूर तक नहीं दिखता है. इसके उल्ट बाल मजदूरी दिन व दिन बढ़ती जा रही है मौजूदा समय में गरीब बच्चे सबसे अधिक शोषण का शिकार हो रहे हैं. जो गरीब बच्चियां होती हैं, उन्हें पढ़ने भेजने की जगह घर में ही बाल श्रम कराया जाता है. छोटे-छोटे गरीब बच्चे स्कूल छोड़कर बाल-श्रम हेतु मजबूर बन जाते हैं. बाल मजदूरी बच्चों के मानसिक, शारीरिक, आत्मिक, बौद्धिक एवं सामाजिक हितों को प्रभावित करती है.
जो बच्चे बाल मजदूरी करते हैं, वो मानसिक रूप से अस्वस्थ्य रहते हैं और बाल मजदूरी उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास में बाधक होती है. बालश्रम की समस्या बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करती है जो कि सविधान के विरुद्ध है और मानवाधिकार का सबसे बड़ा उल्लंघन है.
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2006 तक बालश्रम को इस असमंजस में रखा गया, कि किसे खतरनाक और किसे गैर खतरनाक बाल श्रम की श्रेणी में रखा जाए. उसके बाद इस अधिनियम 1986 में संशोधन कर ढाबों, घरों, होटलों में बालश्रम करवाने को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया.
बाल मजदूरी के खिलाफ जागरुकता फैलाने और 14 साल से कम उम्र के बच्चों को इस काम से निकालकर उन्हें शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से इस दिवस की शुरूआत साल 2002 में ‘द इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन’ की ओर से की गई थी. बाल श्रम के खात्मे के लिए आज के दिन श्रमिक संगठन, स्वयंसेवी संगठन और सरकारें तमाम आयोजन करती हैं. इन सबके बावजूद बाल मजदूरी पर लगाम नहीं लग पा रही है.
बढ़ती चाइल्ड ट्रैफिकिंग और बच्चे
हर साल हजारों बच्चे दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) करके एक राज्य से दूसरे राज्यों में ले जाए जाते हैं. सीमापार ट्रैफिकिंग के जरिए पड़ोसी गरीब देशों नेपाल और बांग्लादेश से भी भारत में ऐसे बच्चे हजारों की संख्या में लाए जा रहे हैं. जबरिया बाल मजदूरी, गुलामी और बाल वेश्यावृत्ति आदि के लिए इन बच्चों को खरीदा और बेचा जाता है.
आप यह जानकार हैरान हो जाएंगे कि इन बच्चों की कीमत जानवरों से भी कम होती है. तस्वीर उससे कहीं ज्यादा भयानक है जो सरकारी आकड़ों के जरिए दिखाई जा रही है. बाल मजदूरी और दासता के विरुद्ध संघर्ष करने वाले नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित संगठन बचपन बचाओ आंदोलन(बीबीए) का मानना है कि तकरीबन 7 से 8 करोड़ बच्चे नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा से वंचित हैं.
बाल श्रम कानून और सरकारें
जब भी बाल श्रम के उन्मूलन की बात आती है सरकार से लेकर नीति निर्माता तक एक ही राग अलापते हैं कि जब तक गरीबी नहीं मिटती, तब तक बाल मजदूरी भी खत्म नहीं होगी. लेकिन, बाल मजदूरी का एकमात्र कारण गरीबी बताकर सरकारें अपना पल्ला नहीं झाड़ सकतीं. यह ऐसी समस्या नहीं है, जो केवल इस वजह से बढ़ रही है. अशिक्षा भी इसकी एक बड़ी वजह है. इसका अशिक्षा और गरीबी से करीबी रिश्ता है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव में भी बाल मजदूरी बढ़ती है.
दरअसल, जब एक बच्चा स्कूल की बजाय खेत-खलिहान, कल-कारखानों, घरों, मकानों, होटलों, ढाबों में मजदूरी कर रहा होगा, तो निश्चित रूप से वह एक अशिक्षित नागरिक भी बन रहा होगा. उसकी अगली पीढ़ी भी बाल मजदूर और निरक्षर ही होगी. बाल मजदूरी का गरीबी और अशिक्षा से त्रिकोणात्मक संबंध है. प्राथमिक कक्षाओं में स्कूल से ड्रॉपआउट होना और राज्यों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव भी इसके बड़े कारणों में शुमार है.
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