सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में बुनियादी गड़बड़ी, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई का बड़ा बयान

चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि रोजाना ऐसे वकीलों की लंबी कतार लगी होती है जो चाहते हैं कि उनका मामला सुनवाई के लिए शीघ्र सूचीबद्ध किया जाए क्योंकि न्यायालय के आदेश के बावजूद उसे कार्यसूची से हटा दिया गया है.

चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि रोजाना ऐसे वकीलों की लंबी कतार लगी होती है जो चाहते हैं कि उनका मामला सुनवाई के लिए शीघ्र सूचीबद्ध किया जाए क्योंकि न्यायालय के आदेश के बावजूद उसे कार्यसूची से हटा दिया गया है.

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Dhirendra Kumar
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सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में बुनियादी गड़बड़ी, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई का बड़ा बयान

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई- फाइल फोटो

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अविलंब सुनवाई के मुकदमों के सूचीबद्ध नहीं होने पर शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री की कार्यशैली पर नाराजगी व्यक्त करते हुए गुरुवार को कहा कि शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में बुनियादी रूप से कुछ गड़बड़ी है. चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि रोजाना ऐसे वकीलों की लंबी कतार लगी होती है जो चाहते हैं कि उनका मामला सुनवाई के लिए शीघ्र सूचीबद्ध किया जाए क्योंकि न्यायालय के आदेश के बावजूद उसे कार्यसूची से हटा दिया गया है.

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नहीं करना पड़ेगा शीघ्र सुनवाई के लिए उल्लेख
जस्टिस गोगोई तीन अक्टूबर, 2018 को देश के 46वें चीफ जस्टिस का कार्यभार ग्रहण करने के दिन से ऐसी व्यवस्था करने का प्रयास कर रहे हैं जिससे कि वकीलों को शीघ्र सुनवाई के लिए अपने मामले का उल्लेख नहीं करना पड़े और उनके मुकदमे एक निश्चित अवधि के भीतर स्वत: ही सूचीबद्ध हो जाएं. चीफ जस्टिस ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि रोजाना मामले सूचीबद्ध कराने के लिये वकीलों की लंबी कतार लगी रहती है. निश्चित ही इसमें (सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री) कुछ बुनियादी गड़बड़ी है. सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद, मैं इससे (मामले सूचीबद्ध कराने) निबटने में असमर्थ हूं.

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चीफ जस्टिस ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब एक वकील ने अपने एक मामले को शीघ्र सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया और आरोप लगाया कि न्यायालय के आदेश के बावजूद इसे कार्यसूची से निकाल दिया गया है. पीठ ने इसके बाद इस तथ्य का उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट में एक सप्ताह में करीब छह हजार नए मामले दायरे होते हैं जबकि शीर्ष अदालत में इस अवधि में करीब एक हजार मामले दायर होते हैं लेकिन इसके बाद भी शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री प्रभावी तरीके से इनका निबटारा करने में असमर्थ है.

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पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट की तुलना में सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों के सूचीबद्ध होने में ज्यादा वक्त लगता है. पीठ ने कहा कि सर्वोच्च अदालत के न्यायाधीश को शीर्ष अदालत के न्यायाधीश की तुलना में कहीं अधिक मुकदमों पर विचार करना होगा. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘उच्च न्यायालय में हर सप्ताह 6,000 मुकदमे दायर होते हैं और अगले दिन ये सूचीबद्ध हो जाते हैं. शीर्ष अदालत मे सिर्फ एक हजार मुकदमे दायर होते हैं और ये सूचीबद्ध नहीं हो पाते. हम निर्देश देते हैं कि किसी भी मामले को सूची से हटाया नहीं जाए लेकिन इसके बाद भी इन्हें हटा दिया जाता है.

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इसी बीच, वकीलों से खचाखच भरे न्यायालय कक्ष में उस समय लोगों की हंसी छूट गई जब एक अन्य वकील ने अपने मामले के शीघ्र सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया और कहा कि यह 2014 में दायर किया गया था. इस वकील का कहना था कि उसका मुवक्किल 72 साल का है जिनकी कभी भी मृत्यु हो सकती है. चीफ जस्टिस ने उसी शैली में कहा कि आपका अनुरोध स्पष्ट वजहों से अस्वीकार किया जाता है. वह दीर्घायु हों. यह हमारी कामना है. इस पर वकील ने कहा कि उनका मुवक्किल कई बीमारियों से ग्रस्त हैं चीफ जस्टिस ने सवाल किया कि मुझे बताएं, कौन निरोग है.

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