चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है अफगानिस्तान का पतन

चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है अफगानिस्तान का पतन

चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है अफगानिस्तान का पतन

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IANS
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CHENGDU, June

(source : IANS)( Photo Credit : (source : IANS))

अफगानिस्तान पर तालिबान के अप्रत्याशित कब्जे ने देश के लिए उथल-पुथल भरी दूसरी पारी की शुरूआत कर दी है और दुनिया इस घटनाक्रम को करीब से देख रही है।

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कई देशों ने अफगानिस्तान में महत्वपूर्ण निवेश किया है और देश में एक बड़ा हितधारक होने के नाते चीन अब सक्रिय रूप से अपनी प्रतिक्रिया का मूल्यांकन कर रहा है, क्योंकि वह अपने बहु-अरब डॉलर के निवेश और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की रक्षा करना चाहता है, जिसमें बेल्ट एंड रोड पहल भी शामिल है।

तालिबान के अफगानिस्तान के अधिग्रहण की वैश्विक निंदा का सामना करने के बावजूद, चीन नए शासन के लिए अपना समर्थन और स्वीकृति देने वाले पहले राष्ट्रों में से एक है, जिसका तालिबान ने विनम्रतापूर्वक स्वागत किया है।

अफगानिस्तान में अशरफ गनी के नेतृत्व वाली सरकार का पतन, जिसे 2001 से अफगानिस्तान की धरती पर अमेरिकी सैन्य सैनिकों का समर्थन प्राप्त था, ने खुद को चीन के लिए अमेरिका के जूते में कदम रखने के अवसर के रूप में प्रकट किया है। यानी वह अब अमेरिका के बाद अफगानिस्तान के मामलों में खुद एक हिस्सेदार बनना चाहता है।

चीन यह महसूस करने में विफल रहता है कि अमेरिकी उपस्थिति ने एक निवारक के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने चीन सहित अफगानिस्तान में विश्व स्तर पर किए गए विभिन्न निवेशों की रक्षा की।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के अमेरिकी सैनिकों को बाहर निकालने के फैसले ने बीजिंग के लिए भी अराजकता पैदा कर दी है, क्योंकि चीन ने वर्षों से बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश किया है और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के हिस्से के रूप में इस्लामाबाद को भारी ऋण दिया है। यह एशिया में शी जिनपिंग की स्टार परियोजना है, जो प्रसिद्ध सिल्क रोड को फिर से जागृत करना चाहती है।

बीआरआई जिनपिंग की सबसे प्रतिष्ठित परियोजनाओं में से एक है, जिसमें अफगानिस्तान सहित दक्षिण एशियाई देशों के सक्रिय समर्थन की आवश्यकता है।

इसलिए एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और यूरोप में बीआरआई के हिस्से के रूप में चीन का 282 अरब डॉलर का निवेश अब एक मुश्किल स्थिति में है, क्योंकि तालिबान ने एक बार फिर अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है, जो बीआरआई परियोजना के लिए एक बड़ा खतरा है।

पाकिस्तान एशिया में चीनी निवेश का एक बड़ा लाभार्थी रहा है, लेकिन उत्तरी पाकिस्तान में एक चीनी शटल बस में बम विस्फोट की घटना के बाद से बीजिंग ने चिंता व्यक्त करना शुरू कर दिया है। इस विस्फोट में नौ चीनी इंजीनियरों की मौत हो गई थी, जो चार अरब डॉलर के दसू जलविद्युत बांध पर काम कर रहे थे।

विस्फोट के एक महीने बाद, पाकिस्तान ने हमले के लिए तालिबान को जिम्मेदार ठहराया और दावा किया कि इस घटना के लिए अफगान धरती का इस्तेमाल किया गया था। इस तरह की घटनाएं इस बात का उदाहरण हैं कि बड़ी शक्ति वाले अनियंत्रित आतंकी समूह विवादित क्षेत्रों में क्या कर सकते हैं।

चीन ने अपने बीआरआई सपने को सुरक्षित करने के लिए अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे देशों को बड़े कर्ज दिए हैं। हालांकि, इस तरह की दूरदर्शी रणनीति अक्सर तब पलट जाती है, जब शासन अस्थिरता के साथ रातोंरात बदल सकता है। इसलिए चीन को स्वेच्छा से या अनिच्छा से तालिबान को अपना समर्थन देना ही होगा, जो कि एक ऐसा समूह है, जो अपने स्वभाव से अत्यधिक अनिश्चित है और खतरा पैदा करता है। इसी अस्थिरता के कारण वह विश्व स्तर पर अफगानिस्तान में किए गए सभी निवेशों के लिए एक खतरा बन गया है।

ऐसे विवादित राष्ट्रों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की अनियोजित धन की बौछार से संभवत: बीआरआई को झटका लग सकता है, जो इसकी अर्थव्यवस्था और अपने लोगों को और अधिक प्रभावित कर सकता है, क्योंकि राष्ट्र कोविड-19 महामारी के विनाशकारी प्रभाव से उबर रहा है।

हालांकि सीसीपी ने तालिबान के साथ हाथ मिलाने के लिए उनके शासन को स्वीकार कर लिया है, मगर तालिबान को लेकर कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है।

चीन ने अफगानिस्तान में 20 साल पुरानी अमेरिकी उपस्थिति के महत्व को स्पष्ट रूप से कम करके आंका। एक महाशक्ति का बाहर निकलना जरूरी नहीं कि दूसरे के लिए एक अवसर हो।

अगर चीन को जिनपिंग की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल को साकार करना है तो चीन को अब तालिबान को अपने समर्थन का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Source : IANS

      
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