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चंडीगढ़: 10 साल की रेप पीड़िता ने लड़की को दिया जन्म, सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात की याचिका की थी खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने बीते महीने दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात कराने की अनुमति देने की मांग की याचिका को खारिज कर दिया था। अदालत ने यह कदम उसके जीवन को खतरे के मद्देनजर लिया था।

Updated on: 17 Aug 2017, 09:12 PM

highlights

  • चंडीगढ़ में 10 साल की बच्ची से हुआ था दुष्कर्म
  • लड़की के जीवन के खतरे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दी थी गर्भपात की इजाजत
  • रेप पीड़िता को नहीं मालूम कि उसने किसी बच्ची को दिया है जन्म, पथरी बताकर किया गया ऑपरेशन

नई दिल्ली:

रेप की शिकार 10 साल की पीड़िता जिसके गर्भपात कराने की याचिका को पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी, उसने गुरुवार को एक लड़की को जन्म दिया।

इस बच्ची से उसके मामा ने कई बार दुष्कर्म किया था। अस्पताल के सूत्रों ने कहा कि मां और बच्ची की हालत स्थिर है। नवजात को गहन चिकित्सा देखरेख में रखा गया है क्योंकि उसका वजन कम है।

ऑपरेशन से पहले पीड़िता को नहीं बताया गया था कि वह किसी बच्चे को जन्म देने वाली है। उसे बताया गया था कि उसके पेट में पथरी है और इसलिए उसका ऑपरेशन होना है।

बच्ची सेक्टर 32 के गवर्मेट मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में बीते दो दिनों से भर्ती थी। चिकित्सकों का एक दल उसके स्वास्थ्य की निगरानी में लगा था। बच्ची का प्रसव सिजेरियन सर्जरी से कराया गया।

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सुप्रीम कोर्ट ने बीते महीने दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात कराने की अनुमति देने की मांग की याचिका को खारिज कर दिया था।  अदालत ने यह कदम उसके जीवन को खतरे के मद्देनजर लिया था। चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर और डी.वाई. चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के बाद याचिका को नामंजूर कर दिया।

इस बोर्ड को चंडीगढ़ पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) ने अदालत के आदेश पर गर्भवती बच्ची की जांच के लिए बनाया था। इसमें गर्भपात से लड़की के जीवन को खतरे की चेतावनी दी गई थी।

अदालत ने कहा था, 'मेडिकल बोर्ड द्वारा की गई सिफारिश को ध्यान में रखते हुए हम मानते हैं कि न तो यह लड़की के हित में होगा और न ही 32 सप्ताह के भ्रूण के हित में। हम गर्भपात को अस्वीकार करते हैं।'

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यह आदेश वकील आलोक श्रीवास्तव की एक जनहित याचिका पर आया, जिन्होंने 18 जुलाई को चंडीगढ़ की जिला अदालत द्वारा गर्भपात कराए जाने से इनकार करने पर सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया था।