केंद्र जल्द लाएगा नई सहकारिता नीति : अमित शाह
केंद्र जल्द लाएगा नई सहकारिता नीति : अमित शाह
नई दिल्ली:
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने शनिवार को कहा कि सरकार उपयुक्त बदलाव के साथ नई सहकारी नीति लाएगी और यह नई नीति इस साल के अंत तक लागू हो जाएगी।शाह शनिवार को नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय सहकारिता सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। उन्होंने सहकारी सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि सहकारी क्षेत्र को मजबूत करने की जरूरत है और पूरे नेटवर्क की सभी महत्वपूर्ण इकाइयों को जल्द ही कम्प्यूटरीकृत किया जाएगा।
शाह ने कहा, कई लोग कहते हैं कि सहकारिता राज्य का विषय है, लेकिन मैं आपको बता दूं कि हम राज्यों के साथ कोई टकराव नहीं करेंगे और उनके साथ गरीबी दूर करने के लिए काम करेंगे और सहकारिता के मामले में उनकी मदद करेंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि सभी पैक्स, जिला सहकारी बैंकों, नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट और अन्य महत्वपूर्ण वित्तीय संस्थानों को एक नई सॉफ्टवेयर प्रणाली के साथ नया रूप दिया जाएगा।
मंत्री ने यह भी घोषणा की कि देश में मछुआरों के लिए एक नई सहकारी समिति बनाई जाएगी जो उन्हें अपने व्यवसाय में कई तरह से मदद करेगी।
यह देखते हुए कि सहकारी ऋण सुविधा को और अधिक उदार बनाया जाना है, शाह ने आगे कहा कि इस देश में बहुत से लोगों को बैंकों या वित्तीय संस्थानों से छोटे ऋण नहीं मिलते हैं, क्योंकि उनके पास कोई कागज या कुछ गिरवी रखने के लिए नहीं है, ऐसे में ये सहकारी संस्थान उनकी चिंता का समाधान करेंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि 2025 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहकारी क्षेत्र की प्रमुख भूमिका होगी और नया मंत्रालय बनाने के बाद कोई भी इस क्षेत्र के साथ अन्याय नहीं कर पाएगा।
उन्होंने विभिन्न सहकारी संघों के प्रतिनिधियों से इस क्षेत्र को सफल बनाने, पदों को भरने और पदाधिकारियों की नियुक्ति के लिए प्रशिक्षण, कौशल विकास और पारदर्शिता की आवश्यकता का भी आग्रह किया।
शाह ने यह भी कहा कि सहकारिता मंत्रालय बनाना समय की मांग है और इससे समाज के गरीबों, किसानों, महिलाओं और दलितों का विकास होगा।
पीएम मोदी का सहकार से समृद्धि (सहयोग से समृद्धि) का मंत्र ग्रामीण भारत में गरीबी उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
मंत्री ने उन आलोचकों पर भी हमला किया जो कहते हैं कि सहकारिता के दिन खत्म हो गए हैं। अमूल सहकारी का उदाहरण देते हुए शाह ने आगे कहा कि यह 1946 में सरदार पटेल के विजन पर केवल 80 किसानों के साथ बनाया गया था और अब इसका टर्नओवर 53,000 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष से अधिक हो गया है।
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