निजता मौलिक अधिकार है या नहीं इस पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि निजता बहुआयामी है इसलिये इसे मौलिक अधिकार के रुप में नहीं माना जा सकता है।
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ जजों की बेंच से कहा कि ये मौलिक अधिकार के तहत नहीं आता है।
वेणुगोपाल ने कहा, 'निजता मौलिक अधिकार नहीं है अगर इसे मौलिक अधिकार माना भी जाए तो भी ये बहुआयामी है। इसके हर आयाम को मौलिक नहीं माना जा सकता है।'
उन्होंने कहा, 'इंफॉरमेशनल प्रइवेसी' तो मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता है और इसे कभी भी मौलिक अधिकार नहीं माना जाना चाहिये।
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बुधवार को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की बेंच को कहा था कि निजता मौलिक अधिकार हो सकता है लेकिन 'असीमित' नहीं हो सकता है।
इस विवादित मुद्दे पर निजता मौलिक अधिकार में आता है या नहीं इस फैसला करने के लिये 2015 में सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े बेंच को रेफर किया गया था। तब केंद्र सरकार ने 1950 में आए दो सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट का हवाला देते हुए कहा था कि ये मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं आता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि सरकार किसी महिला से ये तो पूछ सकती है कि उसके कितने बच्चे हैं। लेकिन वो ये नहीं पूछ सकती है कि उसने कितने गर्भपात कराए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि निजता के अधिकार को आम कानूनों के तहत अधिकार माना जाए या मौलिक अधिकार के तहत माना जाए।
केंद्र सरकार ने 19 जुलाई को कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं आता है क्योंकि इस संबंध में अदालत के कई फैसले हैं जो सब पर लागू होते हैं। इसलिये ये आम कानूनी अधिकार है जो न्यायिक प्रक्रियाओं के तहत लागू किये गए हैं।
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दरअसल सुप्रीम कोर्ट में आधार कार्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं लंबित हैं। इन याचिकाओं में बायोमेट्रिक जानकारी लेने को निजता का हनन बताया है। जबकि सरकार की अब तक ये दलील रही है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है।
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Source : News Nation Bureau