एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलितों का लगातार विरोध झेल रही केंद्र सरकार ने सोमवार को पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दिया।
केंद्र का कहना है कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पहले से ही पुनर्विचार याचिका दाखिल करने वाली थी, हालांकि छुट्टियों के चलते यह याचिका सोमवार को दाखिल कर पायी।
पुनर्विचार याचिका में सरकार ने यह माना है कि सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला इस कानून को लेकर संसद की सोच के खिलाफ है।
गौरतलब है कि इस एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हुए बदलाव को लेकर दलितों के साथ-साथ राजनीतिक दलों में भी नाराजगी है। यहां तक कि केंद्र सरकार के दलित सांसद भी इस फैसले से सहमत नहीं थे।
बीजेपी के दलित सांसदों ने इस फैसले के खिलाफ सरकार से पुनर्विचार याचिका दायर किए जाने की अपील की थी।
पुनर्विचार याचिका में सरकार ने कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपने ये तर्क रखे हैं:-
1. कोर्ट का हालिया आदेश SC/ST एक्ट को लेकर संसद की सोच के खिलाफ है, 2016 में संसद की इस सिफारिश पर इस कानून और ज़्यादा सख्त बनाया गया था।
2.NCRB के आंकडों के मुताबिक SC/ST समुदाय के खिलाफ उत्पीड़न के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
2016 में 47,338 केस दर्ज हुए इनमें से केवल 24.9% मामलों में ही सज़ा हो पाई। 89.3% मामले 2016 के आखिर तक लंबित थे। ऐसे में SC/ST समुदाय को ये भरोसा दिलाना ज़रूरी है कि शुरुआती जांच की आड़ में आरोपी गिरफ्तारी से नहीं बच पायेगा।
3.सजा की दर में कमी की असली वजह FIR दर्ज करने में होने वाली देरी, गवाहों और शिकायतकर्ता का मुकर जाना और अभियोजन पक्ष की लापरवाही का नतीजा है।
4. जहां एक ओर आर्टिकल 21 के तहत आरोपी के अधिकारों की रक्षा ज़रूरी है वहीँ संरक्षण का ये अधिकार SC/ST समुदाय को भी हासिल है। ऐसे में उत्पीड़न निरोधक कानून के प्रावधानों को हल्का करना संविधान में SC/ST समुदाय को मिले संरक्षण की गारंटी से वंचित कर देगा।
5. इस समुदाय के हालातों को सुधारने के लिए पर्याप्त उपाय करने के बावजूद ये समुदाय नागरिक अधिकारों से वंचित रहा है। ऐतिहासिक, सामाजिक, और आर्थिक वजहों से वो कई तरह के क्रूर अपराधों का शिकार होते रहे हैं।
6. SC/ST Act के संभावित दुरूपयोग की आशंका इस एक्ट के प्रावधानों को नरम बनाये जाने का आधार नहीं हो सकता।
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क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए एससी/एसटी ऐक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था। इसके अलावा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में ऑटोमेटिक गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7 दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे ऐक्शन लेना चाहिए।
यही नहीं शीर्ष अदालत ने कहा था कि सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती। गैर-सरकारी कर्मी की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की मंजूरी जरूरी होगी।
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Source : Arvind Singh