लगभग 50 प्रतिशत भारतीयों का मानना है कि नरेंद्र मोदी सरकार राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को परेशान करने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करती है।
मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने के अवसर पर सीवोटर द्वारा कराए गए अखिल भारतीय सर्वेक्षण के दौरान इसका खुलासा हुआ।
मोदी ने 26 मई 2014 को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उनके नेतृत्व में भाजपा ने लोकसभा चुनावों में 282 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत हासिल किया था। तब से सरकार ने कई निर्णय लिए हैं जिन्हें भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध के एक अंग के रूप में प्रचारित किया गया है।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान मोदी के प्रमुख प्रचार अभियानों में से एक देश में सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ चौतरफा युद्ध छेड़ने का वादा था। सीबीआई और ईडी दोनों छापे और कथित रूप से भ्रष्टाचार के पैसे से अर्जित संपत्ति की जब्ती के माध्यम से बहुत आक्रामक और सक्रिय मोड में रहे हैं।
विपक्षी दलों ने लगातार मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि वह केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर प्रतिद्वंद्वियों को परेशान कर रही है, जो उसके लिए राजनीतिक और चुनावी चुनौती पेश करते हैं।
सरकार के समर्थकों के असहमत होने के बावजूद, सीवोटर सर्वेक्षण में 49 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे विपक्षी दलों द्वारा लगाए गए आरोपों से सहमत हैं।
इसके विपरीत, लगभग 35 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे इस विवाद से सहमत नहीं हैं।
राजनीतिक विभाजन बहुत स्पष्ट है: लगभग 60 प्रतिशत संप्रग समर्थकों ने कहा कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है, जबकि लगभग 30 प्रतिशत एनडीए समर्थकों का यही कहना है।
पिछले नौ वर्षों के दौरान विभिन्न विपक्षी दलों से संबंधित कई राजनीतिक नेताओं ने भ्रष्टाचार और धन शोधन के कथित कृत्यों को लेकर जांच, छापे और गिरफ्तारी का सामना किया है। कई लोगों ने अदालतों से जमानत मिलने से पहले लंबा समय जेल में भी बिताया है। कुछ तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद भी जमानत नहीं ले पाए हैं।
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Source : IANS