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सेंट्रल विस्टा के खिलाफ याचिका पर केंद्र ने कहा, यह कानून की प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग है

हलफनामे में कहा गया है कि सार्वजनिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए, और पैदल यात्री अंडरपास जैसे अन्य कामों के लिए निविदा (टेंडर) जनवरी 2021 में शापूरजी पल्लोनजी एंड कंपनी को प्रदान की गई थी. यह काम नवंबर 2021 तक 10 महीने के भीतर पूरा किया जाना था.

Updated on: 11 May 2021, 09:26 PM

highlights

  • कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक लगाने की मांग
  • सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक की मांग की याचिका पर मंगलवार को दिल्ली HC में सुनवाई हुई
  • सुनावाई के दौरान केंद्र ने इस प्रोजेक्ट के निर्माण का बचाव किया

 

नई दिल्ली:

कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक लगाने की मांग से जुड़ी याचिका पर मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. सुनावाई के दौरान केंद्र ने इस प्रोजेक्ट के निर्माण का बचाव करते हुए कहा कि दायर की गई याचिका जनहित की आड़ में इस परियोजना को रोकने की एक कोशिश है. एक हलफनामे में कार्यकारी अभियंता, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट डिवीजन-3, सीपीडब्ल्यूडी, राजीव शर्मा ने कहा कि हाईकोर्ट के समक्ष दायर की गई याचिका कानून की प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग है और कोविड-19 स्थिति की आड़ में यह परियोजना को रोकने का एक प्रयास है.

हलफनामे में कहा गया है कि सार्वजनिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए, और पैदल यात्री अंडरपास जैसे अन्य कामों के लिए निविदा (टेंडर) जनवरी 2021 में शापूरजी पल्लोनजी एंड कंपनी को प्रदान की गई थी. यह काम नवंबर 2021 तक 10 महीने के भीतर पूरा किया जाना था. केंद्र ने कहा कि परियोजना पर काम जारी रखने की इच्छा व्यक्त करने वाले 250 श्रमिकों के लिए कार्यस्थल पर ही एक कोविड सुविधा स्थापित की गई है.

हलफनामे में जोर दिया गया है कि महत्वपूर्ण बात यह है कि संबंधित कार्य स्थल पर एक समर्पित चिकित्सा सुविधा होने के कारण, श्रमिकों को तत्काल चिकित्सा एवं उनकी उचित देखभाल तक पहुंच प्राप्त होगी, जो अन्यथा अत्यंत कठिन होगी. दलील दी गई है कि इस अभूतपूर्व समय में जब चिकित्सा के हमारे मौजूदा बुनियादी ढांचे पर काफी बोझ है, उसे देखते हुए वह यहां काफी सुरक्षित हैं. हलफनामे में कहा गया है कि 19 अप्रैल, 2021 के डीडीएमए आदेश के पैरा 8 के अनुसार, कर्फ्यू के दौरान निर्माण गतिविधियों की अनुमति है, जहां मजदूर साइट पर रहते हैं.

इसमें कहा गया है कि परियोजना पर काम करने वाले श्रमिक सोशल डिस्टेंसिंग मानदंडों के साथ-साथ अन्य कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करते हुए कार्य स्थल पर ही रह रहे हैं. यह सुझाव देना गलत है कि कोई भी श्रमिक. हलफनामे में कहा गया है कि यह सुझाव देना गलत है कि कोई भी वर्कर सराय काले खां शिविर से या अन्य जगह से दैनिक आधार पर कार्यस्थल पर लाया जाता है. फलस्वरूप, याचिकाकर्ता के मामले का पूरा आधार गलत है और झूठ पर आधारित है.

मुख्य न्यायाधीश डी. एन. पटेल और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की खंडपीठ ने मंगलवार को केंद्र की ओर से दायर हलफनामे को रिकॉर्ड में लाने का आदेश दिया और अन्या मल्होत्रा तथा सोहेल हाशमी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई बुधवार के लिए निर्धारित की. याचिकाकतार्ओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने राष्ट्रीय राजधानी में कोविड-19 की स्थिति बिगड़ने के बीच निर्माण को रोकने के लिए अदालत से निर्देश मांगा है. याचिका में कहा गया है कि ऐसे समय पर अगर निर्माण कार्य चालू रहता है तो इससे अधिक तेजी से संक्रमण फैलने का खतरा होगा.

केंद्र ने कहा कि ठेकेदार ने सभी मजदूरों का हेल्थ इंश्योरेंस करा रखा है और कंस्ट्रक्शन साइट पर कोविड फैसिलिटी भी है. इसके अलावा उनके आरटी-पीसीआर परीक्षण के लिए एक अलग सुविधा भी प्रदान की गई है.

बता दें कि विपक्षी दल नए संसद भवन, सरकारी ऑफिस और प्रधानमंत्री आवास बनाए जाने का विरोध करते रहे हैं. सोशल मीडिया पर भी लोगों ने इस प्रोजेक्ट का यह कहते हुए विरोध किया कि महामारी के दौरान इस काम को रोक दिया जाना चाहिए. कुछ लोगों का कहना है कि इस दौरान हॉस्पिटल्स की परेशानी है, ऑक्सीजन, वैक्सीन और दवाओं की किल्लत है और ऐसे समय में करोड़ों रुपये खर्च करके निर्माण कार्य चालू है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसी ही एक याचिका दायर की गई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फिलहाल दखल देने से मना कर दिया था.