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तमिलनाडु: कावेरी जल विवाद की आंच पहुंची आईपीएल तक, जाने क्या है पूरा मामला

तमिलनाडु में कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड को लेकर राज्य और केंद्र सरकार के बीच चल रहे विवाद की आंच क्रिकेट के महाकुंभ कहे जाने वाले आईपीएल मैचों तक पहुंच गई है।

Updated on: 06 Apr 2018, 07:19 PM

नई दिल्ली:

तमिलनाडु में कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड को लेकर राज्य और केंद्र सरकार के बीच चल रहे विवाद की आंच क्रिकेट के महाकुंभ कहे जाने वाले आईपीएल मैचों तक पहुंच गई है। कावेरी विवाद को लेकर राज्य में आयोजित होने वाले आईपीएल मैंचों का बहिष्कार करने की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है।

10 अप्रैल से चेन्नई में शुरू होने वाले आईपीएल मैचों का बहिष्कार करने की अपील कई राजनीतिक दल कर रहे हैं। हालांकि, आईपीएल के आयोजकों का कहना है कि प्रदर्शन को देखते हुए टीमों के मैच कैंसिल नहीं किए जाएंगे।

बता दें कि शुक्रवार को आरके नगर से एमएलए और एआईडीएमके से बागी नेता टीटीवी दिनाकरन ने लोगों से मैच का बहिष्कार करने की अपील की है।

दिनाकरन ने कहा,' क्रिकेट के ऊपर किसानों की परेशानी को रखना चाहिए। राज्य में किसान पानी की कमी झेल रहे हैं और उनकी परेशानियां कम नहीं हो रहीं। ऐसे में आईपीएल का समर्थन कैसे किया जा सकता है।'

दिनाकरन ने इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार दोनों पर निशाना साधते हुए तमिलनाडु के साथ 'खेल' खेलने का आरोप लगाया।

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इससे पहले टीवीके पार्टी के नेता टी.वेलमुर्गन ने भी लोगों से कुछ इसी तरह की अपील की थी।

वेलमुर्गन ने कहा था कि उनकी पार्टी ने 10 अप्रैल को एम. ए. चिदंबरम स्टेडियम में होने वाले मैच के लिए टिकट खरीदे हैं। अगर आयोजक इस मैच को रद्द नहीं करते, तो उनके पार्टी कार्यकर्ता कावेरी मुद्दे पर मैच के दौरान प्रदर्शन करेंगे।

गौरतलब है कि 16 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के कावेरी नदी का पानी कर्नाटक के साथ बांटने का फैसला देने के बाद से तमिलनाडु में केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन जारी हैं।

राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन केंद्र पर कावेरी प्रबंधन बोर्ड बनाने का दबाव डाल रहे हैं।

क्या है कावेरी विवाद?

कावेरी नदी दो राज्यों, कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच से होकर बहती है। इस नदी के पानी के बंटवारे को लेकर काफी समय से विवाद चला आ रहा है।

अंग्रेजों ने साल 1924 में पहली बार इसके जल को लेकर बंटवारा किया था जिसमें कर्नाटक का आरोप रहा कि उसके साथ अन्याय किया गया। 50 साल बाद ,1974 में उस पर फैसला होना था लेकिन दोनों राज्यों में सहमति नहीं बन पाई।

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आखिरकार 1990 में केंद्र सरकार ने कावेरी जल ट्राइब्यूनल का गठन किया। दोनों पक्षों को कई साल तक सुनने के बाद 2007 में ट्राइब्यूनल ने तमिलनाडु को 419 टीएमसी फीट, कर्नाटक को 270 टीएमसी, केरल को 30 टीएमसी फीट और पुडुचेरी को 7 टीएमसी फीट पानी तय किया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में कर्नाटक सरकार को आदेश दिया था कि कावेरी नदी से तमिलनाडु के किसानों के लिए आने वाले दस दिन तक 15000 क्यूसेक पानी छोड़ा जाए। इसके बाद कर्नाटक में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया।

दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जहां लंबे समय तक चली सुनवाई के बाद 16 फरवरी को आए फैसले में कर्नाटक को दिए जाने वाले पानी का हिस्सा बढ़ा दिया गया।

कोर्ट ने ऐसा कर्नाटक, खासकर बेंगलुरु में पैदा हुए पेयजल संकट को देखते हुए किया। यह व्यवस्था 15 साल के लिए की गई है।

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