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कावेरी जल विवाद: योजना नहीं देने पर केंद्र से सुप्रीम कोर्ट नाराज, कहा - अवमानना कर रही सरकार

कावेरी नदी के जल बंटवारे को लेकर केंद्र सरकार के योजना नहीं देने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह सीधे तौर पर कोर्ट की अवमानना है।

Updated on: 08 May 2018, 03:01 PM

नई दिल्ली:

कावेरी नदी के जल बंटवारे को लेकर केंद्र सरकार के योजना नहीं देने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह सीधे तौर पर कोर्ट की अवमानना है।

कावेरी जल विवाद पर फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में केंद्र सरकार को चार राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुड्डुचेरी में जल बंटवारे के लिए योजना प्रस्तुत करने का आदेश दिया था।

सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 14 मई से पहले जल संसाधन मंत्रालय के सचिव को कावेरी प्रबंधन योजना के ड्राफ्ट के साथ कोर्ट में पेश होकर यह बताने का आदेश दिया है कि सरकार तमिलनाडु और कर्नाटक समेत चार राज्यों में पानी का बंटवारा कैसे करेगी।

फरवरी में दशकों पुराने इस विवाद पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसके अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार को एक योजना तैयार करने का आदेश दिया था।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार से कहा कि एक बार जब इस मुद्दे पर फैसला दे दिया गया था तो इसे लागू किया जाना चाहिए था।

मामले की सुनवाई के लिए 14 मई का समय देने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसपर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह सीधे तौर पर कोर्ट के फैसले की अवमानना है।

जस्टिस ए एम खानविलकर और डी वाई चंद्रचूड़ वाली बेंच ने कहा, 'हम दोबारा फिर इसी मुद्दे पर नहीं आना चाहते। एक बार जब जजमेंट दे दिया गया है तो इस लागू किया जाना चाहिए।'

वहीं केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा, 'केंद्रीय मंत्रियों के कर्नाटक चुनाव में व्यस्त रहने की वजह से कैबिनेट की बैठक नहीं हो पायी है इसलिए इसपर अंतिम मुहर नहीं लगी है।

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अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल के इस तर्क का विरोध करते हुए तमिलनाडु की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील शेखर नपहाडे ने कहा, 'यह अवमानना का सबसे सटीक मामला है और ऐसे में तो किसी को जेल भेजा जाना चाहिए।'

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में दशकों पुराने इस विवाद पर फैसला सुनाते हुए पानी के सही बंटवारे को सुनिश्चित करने के लिए योजना तैयार करने का आदेश दिया था।

फरवरी के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु को मिलने वाली पानी को कम कर दिया था। कोर्ट के फैसले के बाद तमिलनाडु को 177.25 टीएमसी फीट (हजार मिलियन क्यूबिक फीट) पानी जबकि कर्नाटक को 14.75 टीएमसी फीट पानी अतिरिक्त देने का आदेश दिया था।

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