उत्तर पश्चिम बंगाल के विभिन्न इलाकों से तस्करी कर लाए जा रहे कम से कम पांच कंगारू पिछले 30 दिनों में बरामद किए गए हैं। हालांकि, ये स्तनपायी भारत में नहीं पाए जाते हैं, इसलिए इन बरामद पशुओं की उत्पत्ति अभी तक स्पष्ट नहीं है।
आईएएनएस से बात करते हुए, राज्य के वन्यजीव विशेषज्ञों ने दार्जिलिंग जिले के सिलीगुड़ी और जलपाईगुड़ी से बरामद इन कंगारुओं की उत्पत्ति के स्थान पर संदेह व्यक्त किया।
लंबे समय से उत्तरी बंगाल में वनस्पतियों और जीवों के अनुसंधान और संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले एक प्रतिष्ठित एनजीओ, जलपाईगुड़ी साइंस एंड नेचर क्लब (जेएसएनसी) के सचिव राजा राउत ने कहा कि यह भी स्पष्ट नहीं है कि ये कंगारू हैं भी या नहीं।
राउत ने आईएएनएस को बताया, पहला संदेह यह है कि बरामद किए गए जानवर कंगारू हैं या वालाबी। बरामद किए गए पशुओं के आकार से, यह अधिक संभावना है कि वे वालाबी हैं।
उन्होंने कहा कि कंगारू आमतौर पर आकार में बहुत बड़े होते हैं और वालाबी से भारी होते हैं। कंगारुओं की ऊंचाई दो मीटर तक हो सकती है और उनका वजन करीब 90 किलोग्राम तक हो सकता है। हालांकि, वालाबी की ऊंचाई अधिकतम एक मीटर तक जा सकती है और उनका वजन अधिकतम 20 किलोग्राम तक हो सकता है।
दूसरा संदेह, उनके अनुसार, बरामद किए गए इन जानवरों के स्रोत के बारे में है। हमें संदेह है कि इन बरामद जानवरों की उत्पत्ति ऑस्ट्रेलिया जैसा कोई विदेशी देश है। बल्कि, हमें संदेह है कि ये जानवर कृत्रिम गर्भाधान के लिए कुछ अवैध प्रजनन फार्म से हैं जो पूर्वोत्तर भारत के कुछ दूरदराज के इलाकों में काम कर रहे हैं, खासकर मिजोरम में इसकी उपस्थिति है।
हाल ही में हमें पूर्वोत्तर में एक ही क्षेत्र में काम कर रहे साथी गैर सरकारी संगठनों से सूचना मिली है कि कुछ ऐसे अवैध प्रजनन फार्मों ने कृत्रिम गभार्धान के माध्यम से कंगारू या वालाबी का प्रजनन शुरू कर दिया है।
आईएएनएस ने बंगाल और वन बल के प्रमुख अतनु कुमार राहा से भी संपर्क किया। हालांकि, उन्होंने इन जानवरों की उत्पत्ति या तस्करी के पीछे के मकसद पर कोई टिप्पणी नहीं की, उन्होंने कहा: कंगारू तस्करी का चलन कुछ नया है। इसलिए, मैं उनके स्रोत या मूल पर टिप्पणी करने में असमर्थ हूं।
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Source : IANS